ग़ज़ल गायन [ ग़ज़ल ] : विनोद कुमार उपाध्याय के स्वर में ---
विनोद कुमार उपाध्याय [ लखनऊ] जी ने मेरी एक ग़ज़ल को ्अबड़े ही दिलकश अंदाज़ में अपना स्वर दिया है आप भी सुनें। लिंक पर क्लिक करें
https://www.facebook.com/watch/?v=503360932825231&rdid=yXGK9YMOhcYihyGL
आप की सुविधा के लिए ,ग़जल की पूरी इबारत यहाँ लगा रहा हूँ--
ग़ज़ल 431
दौलत की भूख ने तुम्हे अंधा बना दिया
इस दौड़ में सुकून भी तुमने लुटा दिया
दो-चार बस फ़ुज़ूल इनामात क्या मिले
दस्तार को भी शौक़ से तुमने गिरा दिया
इल्म.ओ.अदब की रोशनी चुभने लगी उसे
जलता हुआ चिराग़ भी उस ने बुझा दिया
लहजे में अब है तल्ख़ियाँ, लज़्ज़त नहीं रही
आदाब.ओ.तर्बियत मियाँ! तुमने भुला दिया
सत्ता ने चन्द आप को अलक़ाब क्या दिए
अपनी क़लम को आप ने गूँगा बना दिया
कुछ लोग थे कि राह में काँटे बिछा गए
कुछ लोग हैं कि राह से पत्थर हटा दिया
’आनन’ अजीब हाल है लोगों को क्या कहें
था शे’र और का, मगर अपना बता दिया।
-आनन्द.पाठक-
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