tag:blogger.com,1999:blog-56183870275390957912024-03-18T18:53:08.152+05:30गीत ग़ज़ल और माहिए ------आनन्द पाठकआनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.comBlogger753125tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-26729069510086452822024-03-18T13:08:00.003+05:302024-03-18T18:52:37.338+05:30अनुभूतियाँ 133/20 : होली परअनुभूतियाँ 133/20: होली पर<div>1</div><div>रंग गुलालों का मौसम है</div><div>महकी हुई फिज़ाएँ भी हैं</div><div>कलियाँ कलियाँ झूम रही हैं</div><div>बहकी हुई हवाएँ भी हैं</div><div><br /></div><div>2</div><div>रंगोली में रंग भरे हैं</div><div>चाहत के, कुछ प्रीति प्यार के</div><div>आ जाते तुम एक बार जो</div><div>आ जाते फिर दिन बहार के</div><div><br /></div><div>3 </div><div>"राधा" छुपती छुपती भागे</div><div>'कान्हा' ढूँढे भर पिचकारी</div><div>ग्वाल बाल की टोली आती</div><div>देख गोपियाँ देवै गारी</div><div><br /></div><div><br /></div><div>4</div><div>"प्रेम मुहब्बत भाईचारा"</div><div>होली का संदेश हमारा</div><div>गले मिलें औ' रंग लगाएँ</div><div>पर्व अनूठा अनुपम न्यारा</div><div><br /></div><div>-आनन्द पाठक-</div>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-18030186501158747332024-03-18T11:29:00.001+05:302024-03-18T11:29:23.165+05:30ग़ज़ल 348(23): समन्दर की व्यथा क्या हैसआनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-74857729599310263972024-03-18T10:55:00.000+05:302024-03-18T10:55:08.514+05:30अनुभूतियाँ 133/20 : होली पर<p> अनुभूतियाँ 133/20 : होली पर</p><p>;1:</p><p>रंग गुलालों का मौसम है</p><p>महकी हुई फ़ज़ाएँ भी है</p><p>कलियाँ कलियाँ झूम रही है</p><p>बहकी हुई हवाएँ भी हैं ।</p><p><br /></p><p>;2;</p><p>रंगोली के रंग भरे हैं</p><p>चाहत के, कुछ प्रीति प्यार के</p><p>आ जाते तुम एक बार जो</p><p>आ जाते फिर दिन बहार के </p><div style="text-align: left;"><br /></div><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-32800491634921055872024-03-17T11:41:00.008+05:302024-03-18T10:38:06.000+05:30चन्द माहिए 102 /12 होली पर<p> चन्द माहिए 102/12 [होली पर]</p><p><br /></p><p>;1:</p><p><span>होली के दिन आए</span><br />
<span>कलियाँ शरमाईं</span><br />
<span>भौरें जब मुस्काए</span></p><p>:2:</p><p>आई होली आई</p><p>आज अवध में भी</p><p>खेले चारो भाई</p><p>:3:</p><p>हर दिल पर छाई है</p><p>होली की मस्ती</p><p>गोरी घबराई है</p><p>:4:</p><p>"कान्हा मत छेड़ मुझे"</p><p>राधा बोल रही</p><p>"हट दूर परे, पगले !"</p><p><br /></p><p>:5:</p><p>होली के बहाने से</p><p>बाज न आएगा</p><p>तू रंग लगाने से ।</p><p><br /></p><p>-आनन्द पाठक-</p><p><br /></p>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-19274680615216207262024-03-17T11:35:00.009+05:302024-03-18T10:35:58.013+05:30चन्द माहिए : क़िस्त 101 /11 होली पर<p> </p><p><br /></p><p><br /></p><p>चन्द माहिए 101/11 : होली पर</p><p><br /></p><p>:1:</p><p>होली में सनम मेरे </p><p>थाम मुझे लेना</p><p>बहके जो कदम मेरे</p><p><br /></p><p>:2:</p><p>घर घर में मने होली</p><p>हम भी खेलेंगे</p><p>आ मेरे हमजोली </p><p>:3;</p><p>क्यों रंग लगाता है</p><p>दिल तो अपना है</p><p>क्यों दिल न मिलाता है?</p><p>:4:</p><p>क्यों प्रीत करे तन से</p><p>रंग लगा ऐसा</p><p>उतरे न कभी मन से ।</p><p>:5:</p><p>पूछे है अमराई</p><p>फागुन तो आया</p><p>गोरी क्यूँ नहीं आई ?</p><p><br /></p><p>-आनन्द पाठक-</p><p><br /></p><p><br /></p>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-87573331341083024762024-03-17T10:52:00.005+05:302024-03-17T10:52:26.945+05:30ग़ज़ल 358/33 : चलो होली मनाएँ---<p> </p><p><br /></p><p><br /></p><p>ग़ज़ल 358/33</p><p><br /></p><p>1222---1222---1222---1222</p><p><br /></p><p>चलो होली मनाएँ आ गया फिर प्यार का मौसम</p><p>गुलाबी हो रहा है मन, तेरे पायल की सुन छम छम</p><p><br /></p><p>लगीं हैं डालियाँ झुकने, महकने लग गईं कलियाँ</p><p>हवाएँ भी सुनाने लग गईं अब प्यात का सरगम ।</p><p><br /></p><p>समय यह बीत ना जाए, हुई मुद्दत तुम्हें रूठे</p><p>अरी ! अब मन भी जाओ, चली आओ मेरी जानम।</p><p><br /></p><p>भरी पिचकारियाँ ले कर चली कान्हा की है टोली</p><p>इधर हैं ढूँढते ’कान्हा’,उधर राधा हुई बेदम ।</p><p><br /></p><p>चुनरिया भींग जाए तो बदन में आग लग जाए</p><p>लुटा दे प्यार होली में, रहे ना दिल में रंज-ओ-ग़म । </p><p><br /></p><p>ये मौसम है रँगोली का, अबीरों का, गुलालों का</p><p>बुला कर रंजिशें सारी, गले लग जा मेरे हमदम ।</p><p><br /></p><p>इसी दिल में है ’बरसाना’, ’कन्हैया’ भी हैं”राधा’ भी</p><p>तू अन्दर देख तो ’आनन’ दिखेगा वह युगल अनुपम ।</p><p><br /></p><p>-आनन्द.पाठक-</p><p><br /></p><p><br /></p>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-6395297742550849142024-03-16T11:28:00.001+05:302024-03-16T11:29:56.281+05:30ग़ज़ल 354 का सस्वर पाठ <p> <span style="color: #2b00fe;"><b>ग़ज़ल 354 :मैने तुम से कभी कुछ कहा ही नहीं ---</b></span></p><p><span style="background-color: #fcff01; color: red;">इस ग़ज़ल का सस्वर पाठ यहाँ सुनें</span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="background-color: #fcff01; color: red;"><iframe allowfullscreen='allowfullscreen' webkitallowfullscreen='webkitallowfullscreen' mozallowfullscreen='mozallowfullscreen' width='320' height='266' src='https://www.blogger.com/video.g?token=AD6v5dz2MONrsfU3I7Dpm68I1m2koS3qcVbAaMPzZFxp8pZ05do1m5o9RuzFq4cQs9t4LUMi_clVFBkni354pSbeVA' class='b-hbp-video b-uploaded' frameborder='0'></iframe></span></div><span style="background-color: #fcff01; color: red;"><br /></span><p></p>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-11544503307548474452024-03-15T17:32:00.007+05:302024-03-16T09:31:32.384+05:30ग़ज़ल 357/32 : चिराग़-ए-इश्क़ मेरा<p> </p><p>ग़ज़ल 357/32</p><p>1212---1122---1212---22-</p><p><br></p><p>चिराग़-ए-इश्क़ मेरा यूँ बुझा नहीं होता</p><p>नज़र से आप की जो मैं गिरा नहीं होता</p><p><br></p><p>क़लम न आप की बिकती, नहीं ये सर झुकता</p><p>जमीर आप का जो गर बिका नहीं होता</p><p><br></p><p>शरीफ़ लोग भी तुझको कहाँ नज़र आते</p><p>अना की क़ैद में जो तू रहा नहीं होता ।</p><p><br></p><p>वहाँ के हूर की बातें ज़रूर सुनते हम</p><p>यहाँ अगर जो कोई बुतकदा नही होता ।</p><p><br></p><p>सफ़र तवील था, कटता भला कहाँ मुझसे</p><p>सफ़र की राह में जो मैकदा नहीं होता ।</p><p><br></p><p>मेरे गुनाह मुझे कब कहाँ से याद आते</p><p>जो आस्तान तुम्हारा दिखा नहीं होता ।</p><p><br></p><p>तुम्हारे बज़्म में ’आनन’ पहुँच गया होता</p><p>ख़याल-ए-ख़ाम में जो दिल फँसा नहीं होता</p><p><br></p><p>-आनन्द.पाठक- </p>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-46991601410237100712024-03-12T10:39:00.004+05:302024-03-12T17:21:26.527+05:30ग़ज़ल 356/31 मिलता है बड़े शौक़ से --<p> ग़ज़ल 356/31</p><p>221---1221---1221---122</p><p><br></p><p>मिलता है बड़े शौक़ से वह हाथ बढ़ा कर</p><p>रखता है मगर दिल में वो ख़ंज़र भी छुपा कर</p><p><br></p><p>तहज़ीब की अब बात सियासत में कहाँ हैं</p><p>लूटा किया है रोज़ नए ख़्वाब दिखा कर</p><p><br></p><p>यह शौक़ है या ख़ौफ़ कि आदात है उसकी</p><p>मिलता है कभी तो वह मुखौते ही चढ़ा कर</p><p><br></p><p>करने को करे बात वो ऊँची ही हमेशा</p><p>जब बात अमल की हो, करे बात घुमा कर</p><p><br></p><p>जिस बात का हो सर न कोई पैर हो प्यारे</p><p>उस बात को बेकार न हर बार खड़ा कर</p><p><br></p><p>यह कौन सा इन्साफ़, कहाँ की है शराफ़त</p><p>कलियों को मसलते हो ज़बर ज़ोर दिखा कर</p><p><br></p><p>’आनन’ करेगा और पे कितना तू भरोसा</p><p>धोखा ही मिला जब है तुझे दिल को लगा कर।</p><p><br></p><p>-आनन्द.पाठक-</p><p><br></p><p><br></p>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-17392582282972830562024-03-08T11:19:00.008+05:302024-03-13T18:22:10.577+05:30अनुभूतियाँ 132/19 : चुनावी अनुभूतियाँ<p> </p><p><br /></p><p><br /></p><p>चुनावी अनुभूतियाँ </p><p><br /></p><p>:1:</p><p>कल बस्ती में धुँआ उठा था</p><p>दो मज़हब टकराए होंगे ।</p><p>अफ़वाहों की हवा गर्म थी</p><p>लोग सड़क पर आए होंगे ।</p><p><br /></p><p>;2:</p><p>जहाँ चुनावी मौसम आया</p><p>हवा साज़िशें करने लगती</p><p>झूठे नार वादों पर ही</p><p>जनता जय जय करने लगती </p><p><br /></p><p>;3:</p><p>जिस दल की औक़ात नही है</p><p>ऊँची ऊँची हाँक रहा है ।</p><p>अपना दर तो खुला छोड़ कर</p><p>दूजे दल में झाँक रहा है ।</p><p>:4:</p><p>झूठों की क्या बात करे हम</p><p>झूठ बोलने की हद कर दी</p><p>दो बोलें या दस बोलें वो</p><p>चाहे बोलें सत्तर अस्सी</p>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-45654708511062838812024-03-08T11:09:00.011+05:302024-03-08T17:29:16.027+05:30गीत 84: फिर चुनाव का मौसम आया<p> </p><p><br></p><p><br></p><p><b><span>चुनावी गीत</span></b></p><p><br></p><p>रंग बदलते नेताओं को ,देख देख गिरगिट शरमाया।</p><p>फिर चुनाव का मौसम आया ।</p><p><br></p><p><span><span> </span>पलटी मारी, उधर गया था, पलटी मारी इधर आ गया</span></p><p><span>’कुर्सी’ ही बस परम सत्य है, जग मिथ्या है' समझ आ गया'</span></p><p><br></p><p>देख गुलाटी कला ’आप’ की, मन ही मन बंदर मुस्काया।</p><p>फिर चुनाव का मौसम आया ।</p><p><br></p><p><span><span> </span>वही तमाशा दल बदली का, दल बदले पर दिल ना बदला</span></p><p><span><span> </span>बाँट रहे हैं मुफ़्त ’रेवड़ी’, सोच मगर है गँदला ,गँदला ।</span></p><p><br></p><p>वही घोषणा पत्र पुराना, पढ़ पढ़ जनता को भरमाया ।</p><p>फिर चुनाव का मौसम आया ।</p><p><br></p><p><span><span> </span>आजीवन बस खड़ा रहेगा, अन्तिम छोर खड़ा है ’बुधना’</span></p><p><span><span> </span>हर दल वाले बोल गए हैं, - "तेरा भी घर होगा अपना "</span></p><p>जूठे नारों वादों से कब किसका पेट भला भर पाया।</p><p>फिर चुनाव का मौसम आया ।</p><p><br></p><p>-आनन्द.पाठक-</p><p><br></p><p><span> </span></p>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-22322275664884126972024-03-06T09:47:00.003+05:302024-03-06T10:21:07.639+05:30क्षणिका 05<p> <b style="color: red;">चन्दन वन से</b></p><blockquote style="border: none; margin: 0px 0px 0px 40px; padding: 0px;"><blockquote style="border: none; margin: 0px 0px 0px 40px; padding: 0px;"><blockquote style="border: none; margin: 0px 0px 0px 40px; padding: 0px;"><blockquote style="border: none; margin: 0px 0px 0px 40px; padding: 0px;"><blockquote style="border: none; margin: 0px 0px 0px 40px; padding: 0px;"><blockquote style="border: none; margin: 0px 0px 0px 40px; padding: 0px;"><blockquote style="border: none; margin: 0px 0px 0px 40px; padding: 0px;"><p><br /></p></blockquote></blockquote></blockquote></blockquote></blockquote></blockquote></blockquote>जब बबूल बन से गुज़रोगे<br />क्या पाओगे ?<br />राहों में काँटे ही काँटे<br />दूर दूर तक बस सन्नाटे ।<br />चन्दन बन से जब गुज़रोगे <br />एक सुगन्ध <br />भर जाएगी साँसों में<br /> लेकिन सावधान भी रहना<br />शाखों से लिपटे साँपों से ।<br /><br />-आनन्द.पाठक-<br /><blockquote style="border: none; margin: 0px 0px 0px 40px; padding: 0px; text-align: left;"><blockquote style="border: none; margin: 0px 0px 0px 40px; padding: 0px; text-align: left;"><p><br /></p></blockquote></blockquote><p><br /></p>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-79075987775461146482024-03-06T09:46:00.002+05:302024-03-06T10:19:20.611+05:30क्षणिका 04 <p><span style="color: red;"><b> ख़्वाब देखना--</b></span></p><div style="text-align: left;"><br />ख़्वाब देखना ,बुरा नहीं है ।<br />हक़ है तुम्हारा।<br />यह किसी की दुआ नहीं है।<br />सिर्फ़ देखना रोज़ देखना<br />और देखते ही बस रहना, कुछ न करना<br />फिर सो जाना, फिर खो जाना<br />ठीक नहीं है ।<br /> उठो , जगो, पुरुषार्थ जगाओ<br />पुरुषार्थ तुम्हारा भीख नही है ।</div><p><br /></p><p>-आनन्द.पाठक-</p><p><br /></p><blockquote style="border: none; margin: 0px 0px 0px 40px; padding: 0px; text-align: left;"><blockquote style="border: none; margin: 0px 0px 0px 40px; padding: 0px; text-align: left;"><blockquote style="border: none; margin: 0px 0px 0px 40px; padding: 0px; text-align: left;"><blockquote style="border: none; margin: 0px 0px 0px 40px; padding: 0px; text-align: left;"><blockquote style="border: none; margin: 0px 0px 0px 40px; padding: 0px; text-align: left;"><blockquote style="border: none; margin: 0px 0px 0px 40px; padding: 0px; text-align: left;"><blockquote style="border: none; margin: 0px 0px 0px 40px; padding: 0px; text-align: left;"><p><br /></p></blockquote></blockquote></blockquote></blockquote></blockquote></blockquote></blockquote>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-7955092357574413442024-02-20T09:25:00.000+05:302024-02-20T09:25:23.441+05:30ग़ज़ल 355/30 : दिल का बयान करते<p> </p><p><br></p><p>ग़ज़ल 355/30</p><p><br></p><p>221---2122 // 221-2122</p><p><br></p><p>दिल का बयान करते ये आइने ग़ज़ल के</p><p>माजी के है मुशाहिद, नाज़िर हैं आजकल के</p><p><br></p><p>एहसास-ए-ज़िंदगी हूँ, जज़्बा भी हूँ, ग़ज़ल हूँ</p><p>हर दौर में हूँ निखरी, अहल-ए-ज़ुबाँ में ढल के</p><p><br></p><p>अन्दाज़-ए-गुफ़्तगू है नाज़-ओ-नियाज़ भी है</p><p>तहज़ीब ,सादगी भी आदाब हैं ग़ज़ल के </p><p><br></p><p>आती समझ में उसको कब रोशनी की बातें</p><p>वो तीरगी से बाहर आता नही निकल के ।</p><p><br></p><p>सीने की आग से जो ये खूँ उबल रहा है </p><p>इन बाजुओं से रख दे दुनिया का रुख़ बदल के</p><p><br></p><p>हर बार ख़ुद ही जल कर देती सबूत शम्मा’</p><p>उलफ़त के ये नताइज़ कहती पिघल पिघल के</p><p><br></p><p>जंग-ओ-जदल से कुछ भी हासिल न होगा’आनन’ </p><p>पैग़ाम-ए-इश्क़ सबको मिलकर सुनाएँ चल के ।</p><p><br></p><p>-आनन्द.पाठक-</p><p><br></p><p>नताइज़ = नतीज़े</p><p>मुशाहिद,नाज़िर = प्रेक्षक, observer,गवाह</p><p>जंग ओ जदल = लड़ाई झगड़ा युद्ध</p>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-16565388335366277552024-02-19T10:48:00.007+05:302024-02-19T10:49:58.423+05:30चन्द माहिए : क़िस्त100/10<p> चन्द माहिए : क़िस्त 100/10</p><p><br /></p><p>:1:</p><p>क्या और सुनानी है </p><p>तेरी कहानी में </p><p>मेरी भी कहानी है</p><p><br /></p><p>:2:</p><p>जीवन का सफ़र बाक़ी</p><p>हाथ पकड़ चलना</p><p>मेरे जीवन साथी !</p>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-31637790834211470012024-02-18T11:34:00.012+05:302024-03-15T19:28:29.204+05:30ग़ज़ल 354/29 : तुम से मैने कभी कुछ कहा ही नहीं --<p> </p><p><br /></p><p>ग़ज़ल 354/29</p><p>212---212---212---212--// 212--212--212--212</p><p><br /></p><p>मैने तुम से कभी कुछ कहा ही नहीं , बेनियाज़ी का ये सिलसिला किसलिए ?</p><p>तुमने जो भी कहा मैने माना सभी , फिर भी रहती हो मुझसे ख़फ़ा किसलिए ?</p><p><br /></p><p>उम्र भर मै तुम्हारा रहा मुन्तज़िर, राह देखा किए आख़िरी साँस तक ,</p><p>आजमाना ही था जब मुझे ऎ सनम !बारहा फिर इशारा किया किसलिए।</p><p><br /></p><p>जानता हूँ न आना, न आओगी तुमसौ बहानों से वाक़िफ़ रहा मेरा दिल</p><p>क्या करें दिल है नादान समझा नहींउम्र भर राह देखा किया किसलिए ।</p><p><br /></p><p>जानता हूँ तुम्हारी मैं मजबूरियाँचाह कर भी न तुम कुछ भी कह पाओगी</p><p>इस जमाने का यह कौन सा है करमहाथ में ले के पत्थर खड़ा किसलिए ।</p><p><br /></p><p>क्या छुपा है जो तुमसे छुपाऊँगा मैं और क्या है जो तुमको न मालूम हो</p><p>इक भरम का था परदा रहा उम्र भर, सच उसे मानता मैं रहा किसलिए ?</p><p><br /></p><p>ज़िंदगी का सफ़र इतना आसाँ नहीं , हर क़दम दर क़दम पर मिले पेच-ओ-ख़म</p><p>जो मिला है उसे ही नियति मान लें, जो न हासिल उसे सोचना किसलिए !</p><p><br /></p><p>तुम रफ़ीक़ों की बातों में फिर आ गई,कान भरना था उनको , भरे चल दिए</p><p>तुमने मेरी सफ़ाई सुनी ही कहाँ , बिन सुने ही दिया फिर सज़ा किसलिए ?</p><p><br /></p><p>उसकी मुट्ठी खुली तो दिखी, खाक थी, कहते थकता नहीं था कि है लाख की</p><p>क्या हक़ीक़त थी सबको तो मालूम था,वह मुख़ौटे चढ़ाए रहा किसलिए ?</p><p><br /></p><p>तुम भी ’आनन’ कहाँ किस ज़माने के हो,कौन मिलता यहाँ बेसबब बेग़रज़</p><p>जिसको समझा किया उम्र भर मोतबर, फेर कर मुंह वही चल दिया किसलिए ?</p><p><br /></p><p>-आनन्द.पाठक-</p><p>मुन्तज़िर = प्रतीक्षक</p><p>बारहा = बार बार</p><p>मोतबर = विश्वसनीय</p>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-40274999946059743912024-02-17T16:57:00.009+05:302024-02-19T08:50:57.758+05:30गीत 83 : शरण में राम की आना [ भाग 2]<div> <br><br>गीत 83 : शरण में राम की आना---[भाग 2</div><div><br>कटॆ जब आस की डोरी, बिखर जाएँ सभी सपने<br>जीवन में हो कुछ पाना, शरण में राम की आना ।</div><div><br>जहाँ आदर्श की बातें, <br>सनातन धर्म का प्रवचन<br>तुम्हारे सामने होगा-<br>प्रभु श्री राम का जीवन</div><div><br>स्वयं में राम को ढूँढो, विजय श्री प्राप्त होने तक<br>झलक श्री राम की पाना, शरण में राम की आना ।</div><div><br>वचन कैसे निभाते हैं,<br>कि क्या होती है मर्यादा<br>राजसी ठाठ को तज कर <br>जिया जीवन सदा सादा ।</div><div><br>अगर कुछ सीखना तुमको कि जीने का तरीका क्या<br>स्वयं में राम दुहराना ,शरण में राम की आना ।</div><div><br>परीक्षा माँ सिया ने दी<br>प्रतीक्षा उर्मिला ने की<br>भरत ने राज आसन पर<br>प्रभू की पादुका रख दी ।</div><div><br>तपस्या त्याग क्या होती ,भरत सा आचरण करना।<br>समझ आए. समझ जाना, शरण में राम की आना</div><div><br>-आनन्द.पाठक-</div><div><br></div>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-27533707939704909602024-02-17T16:23:00.005+05:302024-02-17T16:23:50.237+05:30गीत 82 : सरस्वती वंदना [2024]<p> </p><p><br /></p><p><br /></p><p>सरस्वती वंदना</p><p><br /></p><p>जयति जयति माँ वीणापाणी ,</p><p>मन झंकृत कर दे, माँ भारती वर दे !</p><p><br /></p><p><span style="white-space: normal;"><span style="white-space: pre;"> </span>तेरे द्वारे खड़ा अकिंचन. भक्ति भाव से है पुष्पित मन,</span></p><p>‘<span style="white-space: pre;"> </span>सुर ना जानू, राग न जानू और न जानू पूजन अर्चन !</p><p><br /></p><p>कल्मष मन में घना अँधेरा. ज्योतिर्मय कर दे,</p><p>माँ भारती वर दे !</p><p><br /></p><p><span style="white-space: normal;"><span style="white-space: pre;"> </span>छन्द छन्द माँ तुझे समर्पित, राग ताल से हो अभिसिंचित</span></p><p><span style="white-space: normal;"><span style="white-space: pre;"> </span>जब भी तेरे गीत सुनाऊँ , शब्द शब्द हो जाएँ हर्षित ।</span></p><p><br /></p><p>अटक न जाए कहीं रागिनी, स्वर प्रवाह भर दे ।</p><p>माँ भारती वर दे !</p><p><br /></p><p><span style="white-space: normal;"><span style="white-space: pre;"> </span>’सत्यम शिवम सुन्दरम ’-लेखन,बन जाए जन-मन का दरपन</span></p><p><span style="white-space: normal;"><span style="white-space: pre;"> </span>गूँगों की आवाज़ बने माँ, क़लम हमारी करे नव-सॄजन ।</span></p><p><br /></p><p>शक्ति स्वरूपा बने लेखनी, शक्ति पुंज भर दे ।</p><p>माँ भारती वर दे !</p><p><br /></p><p><span style="white-space: normal;"><span style="white-space: pre;"> </span>मैं अनपढ़ माँ, अग्यानी मन, हाथ जोड़ कर, करता आवाहन,</span></p><p><span style="white-space: normal;"><span style="white-space: pre;"> </span>गीत ग़ज़ल के अक्षर अक्षर तेरे हैं माँ तुझको अर्पन !</span></p><p><br /></p><p>चरण कमल में शीश झुकाऊँ, भक्ति प्रखर कर दे।</p><p>माँ भारती वर दे ! </p><p><br /></p><p>-आनन्द.पाठक-</p><p><br /></p><p><span style="white-space: normal; white-space: pre;"> </span></p><p><br /></p><p><span style="white-space: normal; white-space: pre;"> </span></p><div><br /></div>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-25860445050398220732024-01-15T19:09:00.010+05:302024-01-16T17:10:00.824+05:30ग़ज़ल 353[28] : ज़िंदगी का फ़लसफ़ा कुछ और है--<p><br></p><p><br></p><p>ग़ज़ल 353 [28]</p><p>2122---2122---212</p><p><br></p><p>ज़िंदगी का फ़लसफ़ा कुछ और है</p><p>आदमी का सोचना कुछ और है ।</p><p><br></p><p>बात वाइज़ की सही अपनी जगह</p><p>दर हक़ीकत सामना कुछ और है ।</p><p><br></p><p>तुम भले ही जो कहो, हँस कर कहो</p><p>जर्द चेहरा कह रहा कुछ और है।</p><p><br></p><p>क्यों तुम्हे दिखता नहीं चेहरे का सच</p><p>क्या तुम्हारा आइना कुछ और है ?</p><p><br></p><p>दिल कहे जब भी कहे तो सच कहे</p><p>लग रहा तुमने सुना कुछ और है ।</p><p><br></p><p>वस्ल के पहले ख़याल-ए-वस्ल हो</p><p>फिर तड़पने का मज़ा कुछ और है।</p><p><br></p><p>प्रेम का मतलब नहीं 'आनन' हवस</p><p>प्रेम का तो रास्ता कुछ और है ।</p><p><br></p><p>-आनन्द.पाठक-</p><p><br></p>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-73398973213927608572024-01-13T12:24:00.009+05:302024-03-03T10:09:29.092+05:30ग़ज़ल 352 [27] : नहीं वो बात रही--<p> </p><p><br></p><p>ग़ज़ल 352</p><p>1212---1122---1212---22</p><p><br></p><p>नहीं वो बात रही, क्या करूँ गिला कोई,</p><p>तेरे ख़याल में अब और आ गया कोई ।</p><p><br></p><p>मिले जो आज तलक सबकी थी गरज अपनी</p><p>गले लगा ले जो मुझको,नहीं मिला कोई ।</p><p><br></p><p>दयार आप का हो या दयार-ए-यार कहीं ,</p><p>निगाह-ए-पाक ने कब फर्क है किया कोई !</p><p><br></p><p>करम हो आप का जिस पर वो ख़ुश रहा, वरना</p><p>अजाब-ए-सख़्त के कब तक यहाँ बचा कोई ।</p><p><br></p><p>ज़ुबान बेच दी जिसने खनकते सिक्कों पर</p><p>गिरा जो ख़ुद की नज़र से न उठ सका कोई ।</p><p><br></p><p>कहाँ कहाँ से न गुज़रे तलाश-ए-हक़ में, हम</p><p>सही मुक़ाम न अबतक कहीं मिला कोई ।</p><p><br></p><p>सफ़र हयात का अब ख़त्म हो रहा ’आनन’</p><p>क्षितिज के पार से मुझको बुला रहा कोई ।</p><p><br></p><p>-आनन्द.पाठक-</p>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-834334331087775482024-01-10T10:45:00.011+05:302024-02-17T16:57:33.570+05:30गीत 81 : शरण में राम की आना [ भाग-1]<p><br /></p><p>1222---1222---1222---1222</p><p><span style="color: red;"><i>प्राण प्रतिष्ठा [ 22 जनवरी ] के पावन अवसर पर--श्री राम लला के पावन चरणों मे </i></span></p><p><span style="color: red;"><i>मेरी लेखनी की एक अकिंचन भेंट ------</i></span></p><p><br /></p><p>एक गीत</p><p><br /></p><p>उदासी मन पे जब छाए , अँधेरा फैलता जाए ,</p><p>तनिक भी तुम न घबराना. शरण में राम की आना।</p><p><br /></p><p>करें जब राम का सुमिरन</p><p>कटे बंधन सभी ,प्यारे !</p><p>हृदय में ज्योति जग जाए</p><p>लगें सब लोग तब न्यारे ।</p><p><br /></p><p>अकेला मन भटक जाए, समझ में कुछ नही आए,</p><p>सही जब राह हो पाना, शरण में राम की आना ।</p><p><br /></p><p>राम के नाम की महिमा,</p><p>सदा नल-नील ने जानी ,</p><p>कि तरने लग गए पत्थर</p><p>झुका सागर भी अभिमानी</p><p><br /></p><p>अहम जब सर पे चढ़ जाए, सभी बौने नज़र आएँ</p><p>पड़े तुमको न पछताना, शरण में राम की आना ।</p><p><br /></p><p>जगत इक जाल माया का,</p><p>फँसा रहता तू जीवन भर</p><p>कभी तो सोच ऎ प्राणी !</p><p>है करना पार भव सागर ।</p><p><br /></p><p>जगत जब तुमको भरमाए, कि माया तुमको ललचाए</p><p>धरम को भूल मत जाना, शरण में राम की आना ।</p><p><br /></p><p>-आनन्द.पाठक-</p><p><br /></p>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-35491192545026121672023-12-29T18:06:00.007+05:302024-02-17T17:15:13.322+05:30अनुभूतियाँ 131/18 : राम लला जी के प्राण प्रतिष्ठा पर<p> अनुभूतियाँ 131/18 :</p><p><br /></p><p>:1:</p><p>राम लला जी के मंदिर का</p><p>संघर्षों की एक कहानी</p><p>नई फ़सल अब क्या समझेगी</p><p>प्राण दिए कितने बलिदानी </p><p><br /></p><p>;2:</p><p>पावन क्षण में पावन मन से</p><p>पूजन अर्चन शत शत वंदन</p><p>स्वागत में हम खड़े राम के</p><p>लेकर अक्षत रोली चंदन <br /><br />:3:</p><p>जन मन में अब राम बसे हैं</p><p>हर्षित हैं सब अवध निवासी</p><p>सब पर कृपा राम की होती</p><p>जन मानस,साधु सन्यासी <br /><br />:4:</p><p>रामराज की बातें तब तक</p><p>जब तक राम हृदय में बसते</p><p>वरना तो कुरसी की खातिर</p><p>सबके अपने अपने रस्ते</p><p><br />
<span> :5:</span><br /><span>मंदिर का हर पत्थर पावन</span><br />
<span>प्रांगण का हर रज कण चंदन</span><br />
<span>हाथ जोड़ कर शीश झुका कर </span><br />
<span>राम लला का है अभिनंदन</span><br /></p><p><span><br /></span></p><p><span>:6:</span></p><p><span>हो जाए जब सोच तुम्हारी</span></p><p><span>राग द्वेष मद मोह से मैली</span></p><p><span>राम कथा में सब पाओगे</span></p><p><span>जीवन के जीने की शैली ।</span></p><p><span><br /></span></p><p><span>:7: </span></p><p><span>एक बार प्रभु ऐसा कर दो</span></p><p><span>अन्तर्मन में ज्योति जगा दो</span></p><p><span>काम क्रोध मद मोह तमिस्रा</span></p><p><span>मन की माया दूर भगा दो ।</span></p><p>-आनन्द.पाठक-</p><p><br /></p><p><br /></p>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-71033589689324112622023-12-29T17:48:00.009+05:302024-02-17T17:02:48.063+05:30चन्द माहिए : क़िस्त 99/09 : 22 जनवरी 2024 प्राण प्रतिष्ठा पर<p> चन्द माहिए 98/09] : प्राण प्रतिष्ठा पर</p><p><br /></p><p>:1:</p><p>जन जन के दुलारे हैं</p><p>आज अवध में फिर </p><p>प्रभु राम पधारे हैं</p><p><br /></p><p>:2:</p><p>झूमेंगे नाचेंगे</p><p>प्राण प्रतिष्ठा में</p><p>श्री राम विराजेंगे</p><p><br /></p><p>:3:</p><p>सपना साकार हुआ</p><p>राम लला जी का</p><p>मंदिर तैयार हुआ</p><p><br /></p><p>:4:</p><p>प्रभु राम की सब माया</p><p>उनकी किरपा से</p><p>अब यह शुभ दिन आया</p><p><br /></p><p>:5:</p><p>गिन गिन कर काटे दिन</p><p>स्वर्ग से उतरेंगे</p><p>भगवान सभी इस दिन</p><p><br /></p><p>:6:</p><p>मंदिर की इच्छा में</p><p>पाँच सदी तक थे</p><p>दो नैन प्रतीक्षा में ।</p><p><br /></p><p>:7:</p><p>प्रभु प्रेम में हो विह्वल</p><p>शर्त मगर यह भी</p><p>मन भाव भी हो निश्छल</p><p><br /></p><p>-आनन्द.पाठक-</p>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-42728991982407033152023-12-28T17:57:00.012+05:302024-01-06T21:01:56.184+05:30ग़ज़ल 351[26] : न मिलते आप से जो हम ---<p> ग़ज़ल 351[26]</p><p><br></p><p>1222---1222----1222---1222</p><p><br></p><p>न मिलते आप से जो हम तो दिल बहका नही होता</p><p>अगर हम होश में आते, तो ये अच्छा नहीं होता</p><p><br></p><p>तुम्हारे हुस्न के दीदार की होती तलब किसको,</p><p>तजल्ली ख़ास पर इक राज़ का परदा नहीं होता ।</p><p><br></p><p>असर मे आ ही जाते हम, जो वाइज के दलाइल थे</p><p>अगर इस दरमियाँ इक मैकदा आया नहीं होता ।</p><p><br></p><p>कभी जब फ़ैसला करना, समझ कर, सोच कर करना</p><p>कि जज़्बे से किया हो फ़ैसला , अच्छा नहीं होता ।</p><p><br></p><p>अगर दिल साफ़ होता, सोच होता आरिफ़ाना तो </p><p>तुम्हे फिर ढूँढने में मन मेरा भटका नहीं होता ।</p><p><br></p><p>नवाज़िश आप की हो तो समन्दर क्या. कि तूफ़ाँ क्या</p><p>करम हो आप का तो ख़ौफ़ का साया नहीं होता ।</p><p><br></p><p>दिखावे में ही तूने काट दी यह ज़िंदगी ’आनन’</p><p>तू अपने आप की जानिब से क्यों सच्चा नहीं होता ।</p><p><br></p><p><br></p><p>-आनन्द.पाठक-</p><p><br></p><p><br></p><p> </p><p><br></p>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5618387027539095791.post-40285329163808464822023-12-26T12:43:00.019+05:302024-02-07T07:25:26.366+05:30ग़ज़ल 350[25} चुनावों का ये मौसम<p>ग़ज़ल 350</p><p>1222---1222---1222---1222</p><p><br></p><p>चुनावों काये मौसम,है तुझे सपने दिखाएगा</p><p>घिसे नारे पिटे वादे, वही फिर से सुनाएगा ।</p><p><br></p><p>थमा कर झुनझुना हमको, हमें बहला रहा कब से</p><p>सभी घर में है ख़ुशहाली, वो टी0वी0 पर दिखाएगा</p><p><br></p><p>सजा कर आँकड़े संकल्प पत्रों में हमे देगा</p><p>वो अपनी पीठ अपने आप ख़ुद ही थपथाएगा ।</p><p><br></p><p>किनारे पर खड़े होकर नसीहत करना आसाँ है</p><p>उतर कर आ समन्दर में , नसीहत भूल जाएगा</p><p><br></p><p>इधर टूटे हुए चप्पू , उधर दर्या है तूफानी</p><p>हुई अब नाव भी जर्जर, तू कैसे पार पाएगा ?</p><p><br></p><p>सभी अपने घरों में बन्द हो अपना ही सोचेंगे</p><p>लगेगी आग बस्ती में ,बुझाने कौन आएगा ।</p><p><br></p><p>किसी की अन्धभक्ति में चलेगा बन्द कर आँखें</p><p>गिरेगा तू अगर ;आनन; ग़लत किसको बताएगा </p><p><br></p><p>-आनन्द.पाठक-</p><p><br></p><p><br></p>आनन्द पाठकhttp://www.blogger.com/profile/00352393440646898202noreply@blogger.com0