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शनिवार, 23 मई 2009

गीत 10 : जिसको दुनिया के मेले में ....

गीत 10 : जिसको दुनिया के मेले में ---

जिसको दुनिया के मेले में ढूढा किया
घर के आँगन के कोने मिली जिन्दगी

उम्र यूँ ही कटी भागते - दौड़ते
जिन्दगी खो गई जाने किस मोडे पे
'स्वर्ण-मृगया' के पीछे कहाँ आ गए !
रिश्ते-नाते ,घर-बार सब छोड़ के

प्यास फिर भी मेरी अनबुझी रह गई
आकर पनघट पर ,प्यासी रही जिन्दगी

आकर पहलू में तेरे सिमटने लगे
मायने जिन्दगी के बदलने लगे
चंद रिश्तों पे चादर ढँकी बर्फ की
प्यार के गरमियों से पिघलने लगे

सर्द मौसम में तुमने छुआ इस तरह
गुनगुनी धूप लगने लगी जिन्दगी

आते-आते यहाँ दिल धड़कने लगा
आँख फड़कने लगी,होंठ फड़कने लगा
पास उनकी गली तो नहीं आ गई ?
बेसबब यह कदम क्यों बहकने लगा !

जब खुदी में रहे उनसे न मिल सके
बेखुदी में रहे तो मिली जिन्दगी

यूँ 'आनंद ' ज़माने में बदनाम है
जो देता मुहब्बत का पैगाम है
हुस्न के सामने क्या सर झुक गया
बुत-परस्ती का सर पर इलजाम है

जब से दुनिया ने मुझको काफिर कहा
तब से करने लगा हुस्न की बंदगी

जिसको दुनिया के मेले में ..........

आनंद

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छे ,
    जिसको दुनिया के मेले में ढूढा किया
    घर के आँगन के कोने मिली जिन्दगी
    ये पंक्तियाँ बहुत दमदार हैं

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  2. जिसको दुनिया के मेले में ढूढा किया
    घर के आँगन के कोने मिली जिन्दगी
    ye panktiyaan bahut damdaar hain
    comment post nahee ho pa raha ?

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  3. आदरणीय स्वप्न जी/उड़नतश्तरी जी
    धन्यवाद बधाई के लिए
    सादर
    आनंद

    जवाब देंहटाएं
  4. आ० शारदा जी
    उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद
    सादर
    आनंद

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