रिपोर्ताज

शुक्रवार, 30 मार्च 2012

गीत 41 : आना जितना आसान रहा.....

{ डायरी के पन्नों से--]


एक गीत 


आना जितना आसान रहा
क्या जाना भी आसान ?प्रिये ! कुछ बात मेरी भी मान प्रिये !


तुम प्रकृति नटी से लगती हो इन वासन्ती परिधानों में
तेरे गायन के सुर पंचम घुल जाते कोयल तानों में
जितना सुन्दर ’उपमेय’ रहा ,क्या उतना ही ’उपमान’? प्रिये !
या व्यर्थ मिरा अनुमान ,प्रिये !


जब मन की आँखें चार हुई तन चन्दनवन सा महक उठा
अन्तस में ऐसी प्यास जगी आँखों मे आंसू छलक उठा
तुम जितने भी अव्यक्त रहे क्या उतने ही अनजान ?प्रिये !
फिर क्या होगी पहचान ? प्रिये !


कद से अपनी छाया लम्बी क्यों उसको ही सच मान लिया
अपने से आगे स्वयं रहे कब औरों का सम्मान किया
जितना ही सुखद उत्थान रहा क्या उतना ही अवसान ? प्रिये !
फिर काहे का अभिमान ?प्रिये !


यूँ कौन बुलाता रहता है जब खोया रहता हूँ भ्रम में
मन धीरे धीरे रम जाता जीवन के क्रम औ’अनुक्रम में
मन का बँधना आसान यहाँ ,पर खुलना कब आसान ,प्रिये !
क्या व्यर्थ रहा सब ज्ञान ,प्रिये !

आना जितना आसान रहा
क्या जाना भी आसान ?प्रिये ! कुछ बात मेरी भी मान प्रिये !


आनन्द.पाठक
8800927181

8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! रीतिकालीन रचनाएं पढने जैसा अनुपम आनंद...
    बहुत बढ़िया गीत...
    सादर.

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया गीत भावपूर्ण मार्मिक अभिव्यंजना .

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति...शब्दों और भावों का अद्भुत संयोजन...

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह वाह....................

    बहुत खूबसूरत रचना...............

    कद से अपनी छाया लम्बी क्यों उसको ही सच मान लिया

    अपने से आगे स्वयं रहे कब औरों का सम्मान किया

    जितना ही सुखद उत्थान रहा क्या उतना ही अवसान ? प्रिये !

    फिर काहे का अभिमान ?प्रिये !
    बहुत बहुत अच्छी...........
    सादर
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  5. आ0 शास्त्री जी/उदयवीर जी/जनाब हबीब साहेब/वीरु भाई जी/कैलाश शर्मा जी/अनु जी

    गीत की सराहना एवं उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .भविष्य में भी आप सभी लोग यूँ ही प्रेरणा देते रहेंगे
    सादर
    आनन्द.पाठक

    जवाब देंहटाएं
  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  7. Sir ek baar aap waah wah kya baat hai...sab TV par aaie....I mean jaaiye....

    जवाब देंहटाएं