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सोमवार, 1 सितंबर 2014

चन्द माहिया : क़िस्त 07

माहिए : क़िस्त 07 ओके

::1::
ये हुस्न तो फ़ानी है
फिर कैसा पर्दा
दो दिन की कहानी है

::2::

कुछ ग़म की रात रही
साथ में  रुसवाई
हासिल सौगात रही

::3::

इतना तो बता देते
क्या थी  ख़ता मेरी
फिर जो भी सजा देते

::4::

क्यों दुनिया  के डर  से 
लौट गए थे तुम 
आकर भी मेरे दर से

::5::


जब से है तुम्हें देखा

 देख रहा हूँ मैं
इन हाथों की रेखा


-आनन्द.पाठक-

[सं0 15-06-18]



6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना बुधवार 03 सितम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. आ0 यशोदा जी/आशीष भाई

    आप सभी का धन्यवाद
    सादर
    -आनन्द.पाठक

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  3. आप शब्दों के कुशल चितेरे हैं। अच्छी रचनाएँ।

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  4. आ0 त्रिपाठी जी/ स्मिता जी
    उत्साहवर्धन के लिए आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद
    सादर
    -आनन्द.पाठक
    09413395592

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