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सोमवार, 18 मई 2009

एक कविता 004 : तुम जला कर....

एक कविता 004--

तुम जलाकर दीप
रख दो आँधियों में \
जूझ लेंगे जिन्दगी से
पीते रहेंगे
गम अँधेरा ,धूप ,वर्षा
सब सहेंगे \
बच गए तो रोशनी होगी प्रखर
मिट गए तो गम न होगा \
धूम-रेखा लिख रही होगी कहानी
"जिन्दगी मेरी किसी की भीख न थी --

-आनन्द पाठक---



इस गीत को मेरे यू-ट्यूब्चनेल चैनेल आवाज़ का सफ़र में सुने--





9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही विश्वास से परिपूर्ण पंक्तियाँ है...
    सुन्दर...

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  2. आदरणीया आशा जी
    बहुत बहुत धन्यवाद आप का उत्साह वर्धन के लिए

    आनंद

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  3. प्रिय लोकेन्द्र जी
    बहुत बहुत धन्यवाद आप का उत्साह वर्धन के लिए

    आनंद

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  4. बहुत अच्छा लिखा है आपने
    "जिन्दगी मेरी किसी की भीख न थी
    - विजय

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  5. प्रिय किसलय जी !
    सराहना के लिए धन्यवाद

    ---आनंद

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  6. बहुत सुन्दर रचना-भावपूर्ण.

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  7. Waah ! sankshipt shabdon me gahan bhaav ... bahut sundar rachna...waah !!

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  8. प्रिय रंजना जी
    आप का ब्लॉग देखा बहुत सुन्दर है
    आप ने कविता सराही ,धन्यवाद

    --आनंद

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