एक कविता 004--
तुम जलाकर दीप
रख दो आँधियों में \
जूझ लेंगे जिन्दगी से
पीते रहेंगे
गम अँधेरा ,धूप ,वर्षा
सब सहेंगे \
बच गए तो रोशनी होगी प्रखर
मिट गए तो गम न होगा \
धूम-रेखा लिख रही होगी कहानी
"जिन्दगी मेरी किसी की भीख न थी --
-आनन्द पाठक---
तुम जलाकर दीप
रख दो आँधियों में \
जूझ लेंगे जिन्दगी से
पीते रहेंगे
गम अँधेरा ,धूप ,वर्षा
सब सहेंगे \
बच गए तो रोशनी होगी प्रखर
मिट गए तो गम न होगा \
धूम-रेखा लिख रही होगी कहानी
"जिन्दगी मेरी किसी की भीख न थी --
-आनन्द पाठक---
इस गीत को मेरे यू-ट्यूब्चनेल चैनेल आवाज़ का सफ़र में सुने--
अति सुंदर ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही विश्वास से परिपूर्ण पंक्तियाँ है...
जवाब देंहटाएंसुन्दर...
आदरणीया आशा जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आप का उत्साह वर्धन के लिए
आनंद
प्रिय लोकेन्द्र जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आप का उत्साह वर्धन के लिए
आनंद
बहुत अच्छा लिखा है आपने
जवाब देंहटाएं"जिन्दगी मेरी किसी की भीख न थी
- विजय
प्रिय किसलय जी !
जवाब देंहटाएंसराहना के लिए धन्यवाद
---आनंद
बहुत सुन्दर रचना-भावपूर्ण.
जवाब देंहटाएंWaah ! sankshipt shabdon me gahan bhaav ... bahut sundar rachna...waah !!
जवाब देंहटाएंप्रिय रंजना जी
जवाब देंहटाएंआप का ब्लॉग देखा बहुत सुन्दर है
आप ने कविता सराही ,धन्यवाद
--आनंद