ग़ज़ल 002--ओके
212---212---212---212
प्यास मन की बढ़ाती रहीं मछलियाँ
और अपनी छुपाती रहीं मछलियाँ
जाल कितने मछेरों ने फेंके इधर
फिर भी ख़ुद को बचाती रहीं मछलियाँ
किससे मिलने को आतुर रहीं उम्र भर
क्यों मिलन-गीत गाती रहीं मछलियाँ
प्यास ’मीरा’ की हो या कि ’राधा’ की हो
एक ही रंग पाती रहीं मछलियाँ
दर्द किसको सुनाना था अपना उन्हें
दर्द किसको सुनाती रहीं मछलियाँ
जीना मरना कैसे हमे इश्क़ में
इक तरीक़ा सिखाती रहीं मछलियाँ
तिश्नगी तू भी ’आनन’ जगा यूँ कि ज्यों
जल में रह कर भी प्यासी रहीं मछलियाँ
-आनन्द पाठक-
" समुन्दर में मछलियाँ प्यासी और उदास हो ". बहुत ही बढ़िया कल्पना से लबरेज रचना
जवाब देंहटाएं" समुन्दर में मछलियाँ प्यासी और उदास हो ". बहुत ही बढ़िया कल्पना से लबरेज रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीय मिश्र जी
जवाब देंहटाएंभाव सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
आप से प्रेरणा मिलती रहेगी
-आनन्द