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रविवार, 17 जनवरी 2010

एक ग़ज़ल 009[06] :आंधियों से न कोई गिला कीजिए ...

बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन सालिम
फ़ाइलुन---फ़ाइलुन---फ़ाइलुन---फ़ाइलुन
212--------212-----------212-----212
-----------------------------
ग़ज़ल 009--ओके

आँधियों से न कोई गिला कीजिए
लौ दिए की बढ़ाते रहा कीजिए

सर्द रिश्ते भी इक दिन पिघल जाएंगे
गुफ़्तगू का कोई सिलसिला कीजिए

दर्द-ए-जानां भी है,रंज-ए-दौरां भी है
क्या ज़रूरी है ख़ुद फ़ैसला कीजिए

मैं वफ़ा की दुहाई तो दूंगा  नहीं
आप जितनी भी चाहे जफ़ा कीजिए

हमवतन आप हैं ,हमज़बां आप हैं
दो दिलों में न यूँ फ़ासला कीजिए

आप आएँ न आएँ अलग बात है
पर मिलन का भरम तो रखा कीजिए

आप गै़रों में  इतने न मस्रूफ़ हों
आप ’आनन’ से भी तो मिला कीजिए

-आनन्द.पाठक -

इस गीत को मेरे यू-ट्यूब्चनेल चैनेल आवाज़ का सफ़र में सुने--



इसी ग़ज़ल को आ0 विनोद कुमार उपाध्याय जी के आवाज़ में फ़ेसबुक पर यहाँ सुनें--


10 टिप्‍पणियां:

  1. 45बहुत खूब आनंद जी एक बेहतरीन गजल मै तो आप का नियमित पाठक हूँ बस सिकायत है आप से एक
    आप गै़रों से इतने जो मस्रूफ़ हैं
    काश !’प्रवीण ’ से भी मिला कीजिए
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

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  2. आँधियों से न कोई गिला कीजिए
    लौ दिए की बढ़ाते रहा कीजिए

    सर्द रिश्ते भी इक दिन पिघल जाएगी
    गुफ़्तगू का कोई सिलसिला कीजिए

    wah wah behatareen lajawaab.

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  3. आँधियों से न कोई गिला कीजिए
    लौ दिए की बढ़ाते रहा कीजिए ..

    सार्थक लिखा है ....... दिल की आस नही बुझनी चाहिए ....... गम का अंधेरा तो आएगा उसे आने दें ...

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  4. लो, हमने तो अपनी ट्टिपणी वहीं मेल पर ही कर दी.....और संजो कर भी नहीं रक्खी.... आनन्द नाराज न हों... रचना अच्छी है.

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  5. आ० दिगम्बर जी/साधक जी
    उत्साह वर्धन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
    सादर
    -आनन्द.पाठक

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