रिपोर्ताज

रविवार, 19 सितंबर 2010

एक ग़ज़ल 020[29 A] : संदिग्ध आचरण है ...


मफ़ऊलु---फ़ाइलातुन---// मफ़ऊलु----फ़ाइलातुन
221-           2122  -------// 221--------------2122
मज़ारिअ’ मुसम्मन अख़रब
-------------------------------------
एक ग़ज़ल 020[29 A] : संदिग्ध आचरण है ......ऒके

संदिग्ध आचरण है , खादी का आवरण है
’रावण’ कहाँ मरा है ,’सीता’ का अपहरण है

जो झूठ के हैं पोषक ,दरबार में प्रतिष्ठित
जो सत्य के व्रती हैं ,वनवास में मरण है

शोषित,दलित व पीड़ित,मन्दिर कभी व मस्ज़िद
नव राजनीति का यह, संक्षिप्त संस्करण है

ज़िन्दा कभी बिका तो ,कौड़ी में दो बिकेगा
अनुदान लाश पर है ,भुगतान का हरण है

सरकार मूक दर्शक ,शासन हुआ अपाहिज
सब तालियाँ बजाते भेंड़ों सा अनुसरण है

’रोटी’ की खोजना था ,’अणु-बम्ब’ खोजते हैं
इक्कीसवीं सदी में दुनिया का आचरण है

हर शाम थक मरा हूँ ,हर सुबह चल पड़ा हूँ
मेरी जिजीविषा ही , आशा की इक किरण है

-आनन्द पाठक-
[सं 20-05-18]




5 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार ग़ज़ल

    जानदार ग़ज़ल

    _______________-सभी शे'र नायाब !

    जवाब देंहटाएं
  2. सरकार मूक दर्शक ,शासन हुआ अपाहिज
    सब तालियाँ बजाते भेंड़ों सा अनुसरण है
    ’रोटी’ की खोज बदले ,’अणु-बम्ब’ खोजते हैं
    इक्कीसवीं सदी में दुनिया का आचरण है
    हर शाम थक मरा हूँ ,हर सुबह चल पड़ा हूँ
    मेरी जिजीविषा ही आशा की इक किरण है

    बहुत ही अच्छी रचना है...क्या खूब लिखा है...
    http://veenakesur.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  3. आ० राणा जी/अलबेला जी/वीणा जी
    उत्साह वर्धन के लिए आप लोगो का बहुत-बहुत धन्यवाद
    सादर
    आनन्द.पाठक

    जवाब देंहटाएं
  4. आ० भाग्योत्कर्ष जी
    उत्साह वर्धन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
    सादर
    आनन्द.पाठक

    जवाब देंहटाएं