Ghazal 39 [ 54 A ]
ग़ज़ल 39 [54]: आप मुझको साथ में पाते--
बह्र-ए-रमल मुसद्दस मक़्लूअ’ महज़ूफ़
2122---2122-----2-
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बह्र-ए-रमल मुसद्दस मक़्लूअ’ महज़ूफ़
2122---2122-----2-
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आप धरती पर उतर आते
सामने मुझको खड़े पाते ।
चाँद ,तारों ,ख़्वाब से मुझको
झुनझुने देकर न बहलाते
उँगलियाँ क्यों आप पर उठतीं
आइनों से जो न घबराते
जब मसाईल सामने होते
आप क्यों अनजान बन जाते ?
चाँदनी
यह चार दिन की है
किसलिए इतना हैं इतराते ?
साफ़ चेहरा अब कहाँ ढूँढू
सब रँगे चेहरे नज़र आते ?
बस यही आदत बुरी ’आनन’
दर्द अपने तुम छुपा जाते ।
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