रिपोर्ताज

मंगलवार, 9 अक्टूबर 2018

ग़ज़ल 105 [ 55 A] : वातनुकूलित आप ने आश्रम बना लिए---


ग़ज़ल 105 [55 A]


221---2121----1221----212

 

वातानुकूलित आप ने आश्रम बना लिए

सत्ता के इर्द-गिर्द ही धूनी रमा  लिए

 

’दिल्ली’ में बस गए हैं ’तपोवन’ को छोड़कर

अब साधुओं ने भी हैं मुखौटे चढ़ा लिए

 

सब वेद ज्ञान श्लोक ॠचा मन्त्र  बेच कर

जो धर्म बच गया था दलाली  में खा लिए

 

आए वो ’कठघरे’ में न चेहरे पे थी शिकन

उन साहिबों ने जेल ही में  घर बसा लिए

 

ये आप का हुनर था कि जादूगरी कोई

ईमान बेच आप ने पैसे  कमा  लिए

 

गूँगों की बस्तियों में वो अन्धों की भीड़ में

खोटे तमाम जो भी थे सिक्के चला लिए

 

’आनन’ तुम्हारा मौन था माना बहुत मुखर

लेकिन जहाँ था बोलना क्यों चुप लगा लिए

 

 

 

 

 

 

 

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें