गज़ल 007 ओके
मुफ़ाईलुन---मुफ़ाइलुन--मुफ़ाईलुन---मुफ़ाईलुन
1222---------1222--------1222-------1222---
बह्र-ए-हजज़ मुसम्मन सालिम
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एक ग़ज़ल 07[02 A] : हमें मालूम है संसद में ---
उसी ने झुग्गियों के दर्द पर भाषण दिया होगा ।
शराफ़त से, अदब से जब उसे कुछ बात रखनी थी
भरी संसद में उठ कर गालियाँ वह दे रहा होगा ।
बहस होनी जहाँ थी जब किसी गम्भीर मसले पर
वहीं संसद में ’मुर्दाबाद’ का नारा लगा होगा ।
चले होंगे कभी चर्चे जो रोटी के, ग़रीबी के
गिना कर आंकड़े वो सिर्फ़ सीना तानता होगा ।
कभी मण्डल-कमण्डल पर, कभी ’मस्जिद कि मन्दिर पर
इन्हीं के नाम से कोई तमाशा हो रहा होगा ।
लगा आरोप ’आनन’ पर, खड़ा है कटघरे में वह
कि शायद भूल से उसने कहीं सच कह दिया होगा ।
1222---------1222--------1222-------1222---
बह्र-ए-हजज़ मुसम्मन सालिम
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एक ग़ज़ल 07[02 A] : हमें मालूम है संसद में ---
हमें
मालूम है संसद में कल फिर क्या हुआ होगा ।
वही बेबात कुछ लोगों ने हंगामा
किया होगा ।
उसी ने झुग्गियों के दर्द पर भाषण दिया होगा ।
शराफ़त से, अदब से जब उसे कुछ बात रखनी थी
भरी संसद में उठ कर गालियाँ वह दे रहा होगा ।
बहस होनी जहाँ थी जब किसी गम्भीर मसले पर
वहीं संसद में ’मुर्दाबाद’ का नारा लगा होगा ।
चले होंगे कभी चर्चे जो रोटी के, ग़रीबी के
गिना कर आंकड़े वो सिर्फ़ सीना तानता होगा ।
कभी मण्डल-कमण्डल पर, कभी ’मस्जिद कि मन्दिर पर
इन्हीं के नाम से कोई तमाशा हो रहा होगा ।
लगा आरोप ’आनन’ पर, खड़ा है कटघरे में वह
कि शायद भूल से उसने कहीं सच कह दिया होगा ।
-आनन्द.पाठक-