[ एक समन्दर , मेरे अन्दर ] से
2
11212---11212---11212---11212
वो चिराग़
लेके चला तो है ,मगर
आँधियों का ख़ौफ़ भी
मैं
सलामती की दुआ करूँ ,उसे
हासिल-ए-महताब हो
6
1222---1222---1222---1222
अजब क्या
चीज़ है ये नीद जो आंखों में बसती है
जब आनी है
तो आती है , नहीं आनी ,नही आती
11
1222---1222---1222---1222
तुम्हारा रास्ता तुमको मुबारक हज़रत-ए-नासेह
अरे ! मैं रिन्द हूँ , पीर-ए-मुगां है ढूँढता मुझको
21
ये शराफ़त थी हमारी ,आप की सुन गालियां
चाहते हम भी सुनाते ,बेज़ुबां हम भी न थे
24
11212---11212---11212---11212
मैं दरख़्त हूँ ,वो लगा गया ,मैं बड़ा हुआ ,वो चला गया
वो बसीर था जो भी ख़्वाब थे मेरी शाख़ शाख़ में जज़्ब है
(एक समंदर मेरे अंदर ) --प्रकाशित
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