गुरुवार, 13 अप्रैल 2023
ग़ज़ल 326 (02F): जब दिल में कभी उनका
बुधवार, 12 अप्रैल 2023
ग़ज़ल 325 [01F] : आजकल आप जाने न रहते किधर
325[01F]
212---212---212---212
आजकल आप जाने न रहते किधर
आप की अब तो मिलती नही कुछ ख़बर
इश्क नायाब है सब को हासिल नहीं
कौन कहता मुहब्बत है इक दर्द-ए-सर
ख़्वाब देखे थे या जो कि सोचे थे हम
अब तो दिखती नहीं वैसी कोई सहर
काम ऐसा न कर ज़िंदगी में कभी
जो चुरानी पड़े खुद को ख़ुद से न
छोड़ कर जो गया हम सभी को कभी
कौन आया यहाँ आजतक लौट कर
वक़्त रुकता नहीं है किसी के लिए
तय अकेले ही करना पड़ेगा सफ़र
दिल जो कहता है तुझसे उसी राह चल
क्यों भटकता है ;आनन’ इधर से उधर
-आनन्द.पाठक-
edited 18-06-24
मंगलवार, 11 अप्रैल 2023
ग़ज़ल 324[89ई] : इबादत में मेरी कहीं कुछ कमी है
ग़ज़ल 324[89]
122---122---122---122
इबादत में मेरी कहीं कुछ कमी है
निगाहों में क्यों दिख रही बेरुखी है
तेरी शख़्सियत का मैं इक आइना हूँ
तो फिर क्यों अजब सी लगे ज़िंदगी है
नहीं प्यास मेरी बुझी है अभी तक
अजल से लबों पर वही तिश्नगी है
यक़ीनन नया इक सवेरा भी होगा
नज़र में तुम्हारी अभी तीरगी है
बहुत दूर तक देख पाओगे कैसे
नहीं दिल में जब इल्म की रोशनी है
तुम आओगे इक दिन भरोसा है मुझको
उमीदो पे ही आज दुनिया टिकी है
ये मुमकिन नहीं लौट जाऊँ मै ’आनन’
ये मालूम है इश्क़ ला-हासिली है ।
-आनन्द.पाठक-
अजल = अनादि काल से
ला-हासिली =निष्फल
सोमवार, 10 अप्रैल 2023
ग़ज़ल 322(87E): न आए , तुम नहीं आए बहाना क्या !
न आए , तुम नहीं आए, बहाना क्या
गिला शिकवा शिकायत क्या सुनाना क्या
कभी तोड़ा नही वादा लब ए दम तक
ये दिल की बात है अपनी बताना क्या
नफा नुकसान की बातें मुहब्बत में
इबादत मे तिजारत को मिलाना क्या
हसीं तुम हो, खुदा की कारसाजी है
तो फिर पर्दे मे क्यों रहना, छुपाना क्या
भरोसा क्यों नहीं होता तुम्हे खुद पर
मुहब्बत को हमेशा आजमाना क्या
अगर तुमने नहीं समझा तो फिर छोड़ो
हमारा दर्द समझेगा जमाना क्या
अगर दिल से नहीं कोई मिले 'आनन'
दिखावे का ये फिर मिलना मिलाना क्या
-आनन्द पाठक-
रविवार, 9 अप्रैल 2023
गजल 323(88E) निगाहों ने निगाहों से कहा
निगाहों ने निगाहों से कहा क्या था, खुदा जाने
कभी जब सामना होता लगे हैं अब वो शरमाने
मिले दो पल को राहो में झलक क्या थी क़यामत थी
ये दिल मक्रूज है उनका वो ख्वाबों मे लगे आने
नही मालूम है जिनको, मुहब्बत चीज क्या होती
वही तफसील से हमको लगे हैं आज समझाने
इनायत आप की गर हो भले कागज की कश्ती हो
वो दर्या पार कर लेगी कोई माने नही माने
ये जादू है पहेली है कि उलफत है भरम कोई
कभी लगते हैं वो अपने कभी लगते है बेगाने
बड़ी मुशकिल हुआ करती, मैं जाऊँ तो किधर जाऊँ
तुम्हारे घर की राहों मे हैं मसजिद और मयखाने
अगर दिल साफ हो अपना तो पोथी और पतरा क्या
कि सीधी बात भी 'आनन' लगे हो और उलझाने
-आनन्द पाठक-
शुक्रवार, 7 अप्रैल 2023
ग़ज़ल 321 [86इ] तुम्हारे चाहने से क्या हुआ है
ग़ज़ल 321[86इ]
1222---1222----122
जो होना था वही होकर रहा है
चमन शादाब मुरझाने लगा है