ग़ज़ल 62[07]
221----2122 // 221---2122
मुज़ारे’ मुसम्मन अख़रब
मफ़ऊलु-- फ़ाइलातुन // मफ़ऊलु--फ़ाइलातुन
------------------------
ऐसे समा गये हो ,जानम मेरी नज़र में
तुम को ही ढूँढता हूँ ,हर शै में ,हर बशर में
इस दिल के आईने में इक अक्स जब से उभरा
फिर बाद उसके कोई ठहरा नहीं नज़र में
पर्दा तो तेरे रुख पर देखा सभी ने लेकिन
देखा तुझे नुमायां ख़ुरशीद में ,क़मर में
जल्वा तेरा नुमायां हर सू जो मैने देखा
शम्स-ओ-क़मर में, गुल में, मर्जान में, गुहर में
वादे पे तेरे ज़ालिम हम ऐतबार कर के
भटका किए हैं तनहा कब से तेरे नगर में
आये गये हज़ारों इस रास्ते से ’आनन’
तुम ही नहीं हो तन्हा इस इश्क़ के सफ़र में
-आनन्द.पाठक
शब्दार्थ
शम्स-ओ-क़मर में =चाँद सूरज में
मर्जान में ,गुहर में= मूँगे में-मोती में
[सं 30-06-19]
मुज़ारे’ मुसम्मन अख़रब
मफ़ऊलु-- फ़ाइलातुन // मफ़ऊलु--फ़ाइलातुन
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ऐसे समा गये हो ,जानम मेरी नज़र में
तुम को ही ढूँढता हूँ ,हर शै में ,हर बशर में
इस दिल के आईने में इक अक्स जब से उभरा
फिर बाद उसके कोई ठहरा नहीं नज़र में
पर्दा तो तेरे रुख पर देखा सभी ने लेकिन
देखा तुझे नुमायां ख़ुरशीद में ,क़मर में
जल्वा तेरा नुमायां हर सू जो मैने देखा
शम्स-ओ-क़मर में, गुल में, मर्जान में, गुहर में
वादे पे तेरे ज़ालिम हम ऐतबार कर के
भटका किए हैं तनहा कब से तेरे नगर में
आये गये हज़ारों इस रास्ते से ’आनन’
तुम ही नहीं हो तन्हा इस इश्क़ के सफ़र में
-आनन्द.पाठक
शब्दार्थ
शम्स-ओ-क़मर में =चाँद सूरज में
मर्जान में ,गुहर में= मूँगे में-मोती में
[सं 30-06-19]