अनुभूतियाँ : क़िस्त 07
1
प्रेम स्नेह जब रिक्त हो गया
प्रणय-दीप यह जलता कब तक?
रात अभी पूरी बाक़ी है
बिन बाती यह चलता कब तक?
2
दुष्कर थीं पथरीली राहें-
हठ था तुम्हारा साथ चलोगी।
कितना तुम को समझाया था,
हर ठोकर पर हाथ मलोगी।
3
जीवन पथ का राही हूँ मैं,
एक अकेला कई रूप में ।
आजीवन चलता रहता हूँ,
कभी छांव में, कभी धूप में।
4
बिना बताए चली गई तुम ,
क्या ग़लती थी, प्रिये हमारी।
इतना तो बतला कर जाती,
कब तक देखूँ राह तुम्हारी ।
-आनन्द.पाठक-