रविवार, 4 अप्रैल 2021

ग़ज़ल 166 : सर्द रिश्ते भी हों --

 ग़ज़ल 166

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सर्द रिश्ते भी हों  मगर रखना
अपने लोगों की कुछ ख़बर रखना

आसमाँ पर नज़र तो रखते हो
इस ज़मीं पर भी तुम  नज़र रखना

इश्क में पेच-ओ-ख़म हज़ारों हैं
सोच कर ही क़दम इधर रखना

लोग टूटे हुए हैं अन्दर से -
दिल से दिल साथ जोड़ कर रखना

जख़्म जैसे छुपाते रहते हो
ग़म छुपाने का भी हुनर रखना

पूछ लेना ज़मीर-ओ-ग़ैरत से
पाँव पर जब किसी के, सर रखना

ज़िन्दगी का सफ़र सहल होगा
 मो’तबर एक हम सफ़र  रखना

किसको फ़ुरसत ,तुम्हें सुने ’आनन’
बात रखना तो मुख्तसर रखना 

-आनन्द,पाठक- 

ग़ज़ल 165 [93] : दुआ कर मुझे इक नज़र देखते हैं

 ग़ज़ल 165 [93]

122---122----122---122


दुआ कर मुझे इक नज़र देखते हैं
वो अपनी दुआ का असर देखते हैं

ज़माने से उसको बहुत है शिकायत
हम आँखों में उसकी शरर देखते हैं

सदाक़त, दियानत की बातें किताबी
इधर लोग बस माल-ओ-ज़र देखते हैं

वो कागज़ पे मुर्दे को ज़िन्दा दिखा दे
हम उसका कमाल-ए-हुनर देखते हैं

दिखाता हूँ उनको जो ज़ख़्म-ए-जिगर तो
खुदा जाने वो क्या  किधर देखते हैं

कहाँ तक हमें खींच लाई है हस्ती
अभी और कितना सफ़र ,देखते हैं

सभी को तू अपना समझता है ’आनन’
तुझे लोग कब इस नज़र देखते हैं ।


-आनन्द.पाठक-