:1
ये रिश्ते खत्म नहीं होते
दो दिन की है यह बात नहीं
द्शकों से इसे सँभाला है
द्शकों से इसे सँभाला है
पल दो पल के जज़्बात नहीं
:2:
सब कस्मे, वादे एक तरफ़
कुछ सख़्त मराहिल एक तरफ़
लहरों से कश्ती जूझ रही
ख़ामोश है साहिल एक तरफ़ ।
ख़ामोश है साहिल एक तरफ़ ।
( मराहिल = कई पड़ाव)
:3:
मेरे बारे में जो समझा
मेरे बारे में जो समझा
अच्छा सोचा, दूषित समझा
यह सोच सहज स्वीकार मुझे
तुमने मुझको कलुषित समझा ।
:4:
कुछ बातें ऐसी भी क्या थीं
जो मन मे ही रख्खा तुमने
खुल कर तुम कह सकती थी
तुमको न कभी रोका हमने
-आनन्द पाठक-