बुधवार, 15 जनवरी 2025

अनुभूतियाँ 164/51

 अनुभूतियां 164/51


653

काल-खंड का पहिया चलता

सुख दुख का क्रम बारम्बारा

कभी उच्च्चतम, कभी निम्नतम

इसी बीच में जीवन सारा ।



मंगलवार, 14 जनवरी 2025

अनुभूतियाँ 163/50

 अनुभूतियाँ 163/50


649

कभी प्रेम का ज्वार उठा है

कभी दर्द के बादल छाए ।

जीवन भर मैने जीवन को

मिलन-विरह के गीत सुनाए ।


650

चाहे जितना अँधियारा हो

एक रोशनी मन के अन्दर

सतत जला करती रहती है

राह दिखाती रहती अकसर


651

तीर कमान लिए हाथों में

काल, व्याध बन बैठा छुप कर

इक दिन तो जद में आना है

कब तक रह पाओगे बच कर।


652

साँस साँस पर कर्ज उसी का

साँसों में जो घुला हुआ है ।

 मन आभारी रहता उसका

सतगुण से जो धुला हुआ है ।


-आनन्द.पाठक-


सोमवार, 30 दिसंबर 2024

कोना-02

 [चन्द मुन्तख़िब मानूस अश’आर]


कोना 02

    1

कि गवाँ दिया मैने होश भी, मुझे चैन आ न सका कभी

तेरी याद यूँ ही जवाँ रही, तुझे दिल भुला न  सका कभी ।    - नामालूम  

2

न देखा था जो बज्म-ए-दुश्मन में देखा

मुहब्बत तमाशे दिखाती है क्या क्या ।                

 -बेख़ुद देहलवी

3

इब्तिदा-ए-इश्क़ है रोता है क्या 
आगे आगे देखिए होता  है क्या ।             -मीर तक़ी मीर

4

बग़ैर पूछे जो अपनी सफ़ाई देता है

नहीं भी हो तो मुजरिम दिखाई देता है।            - शौक़-

5

मेहरबां हो के बुला लो मुझे  चाहो जिस वक़्त

मैं गया वक़्त नहीं हूं कि आ भी न सकूँ ।        -दाग़ देहलवी

6

अल्लाह दस्त-ए-नाज़ की नाज़ुक़ सी उँगलियाँ

उस पर भी गुलाब-ए-इत्र की ख़ुशबू का बोझ है ।   

 - डा0 कैलाश गुरुस्वामी

7

हम बावफ़ा थे इसलिए नज़र से गिर गए

शायद उन्हे तलाश किसी बेवफ़ा की थी ।      -नामालूम

8

कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए

यहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं  शहर के लिए ।   

     -दुष्यन्त कुमार


-आनन्द.पाठक [ संकलन कर्ता]