अनुभूतियां 164/51
653
काल-खंड का पहिया चलता
सुख दुख का क्रम बारम्बारा
कभी उच्च्चतम, कभी निम्नतम
इसी बीच में जीवन सारा ।
अनुभूतियां 164/51
653
काल-खंड का पहिया चलता
सुख दुख का क्रम बारम्बारा
कभी उच्च्चतम, कभी निम्नतम
इसी बीच में जीवन सारा ।
अनुभूतियाँ 163/50
649
कभी प्रेम का ज्वार उठा है
कभी दर्द के बादल छाए ।
जीवन भर मैने जीवन को
मिलन-विरह के गीत सुनाए ।
650
चाहे जितना अँधियारा हो
एक रोशनी मन के अन्दर
सतत जला करती रहती है
राह दिखाती रहती अकसर
651
तीर कमान लिए हाथों में
काल, व्याध बन बैठा छुप कर
इक दिन तो जद में आना है
कब तक रह पाओगे बच कर।
652
साँस साँस पर कर्ज उसी का
साँसों में जो घुला हुआ है ।
मन आभारी रहता उसका
सतगुण से जो धुला हुआ है ।
-आनन्द.पाठक-
[चन्द मुन्तख़िब मानूस अश’आर]
कोना 02
1
कि गवाँ दिया मैने होश भी, मुझे चैन आ न सका कभी
तेरी याद यूँ ही जवाँ रही, तुझे दिल भुला न सका कभी । - नामालूम
2
न देखा था जो बज्म-ए-दुश्मन में देखा
मुहब्बत तमाशे दिखाती है क्या क्या ।
-बेख़ुद देहलवी
3
इब्तिदा-ए-इश्क़ है रोता है क्या
आगे आगे देखिए होता है क्या । -मीर तक़ी मीर
4
बग़ैर पूछे जो अपनी सफ़ाई देता है
नहीं भी हो तो मुजरिम दिखाई देता है। - शौक़-
5
मेहरबां हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
मैं गया वक़्त नहीं हूं कि आ भी न सकूँ । -दाग़ देहलवी
6
अल्लाह दस्त-ए-नाज़ की नाज़ुक़ सी उँगलियाँ
उस पर भी गुलाब-ए-इत्र की ख़ुशबू का बोझ है ।
- डा0 कैलाश गुरुस्वामी
7
हम बावफ़ा थे इसलिए नज़र से गिर गए
शायद उन्हे तलाश किसी बेवफ़ा की थी । -नामालूम
8
कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए
यहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए ।
-दुष्यन्त कुमार
-आनन्द.पाठक [ संकलन कर्ता]