गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

अनुभूतियाँ 167/54

 अनुभूतियाँ 167/54

665

लोग समझते रहे हमेशा

अपनी अपनी ही नज़रों से

तौल रहे है प्रेम हमारा

काम-वासना के पलड़ों से।


666

नहीं भुलाने वाली बातें

तुम्ही बता दो कैसे भूलें ?

माना हाथ हमारे बौने

चाह मगर थी, तुमको छू लें।




ग़ज़ल 429[03G] : ज़िंदगी इक रंज़-ओ-ग़म का सिलसिला है

 ग़ज़ल 429 [03 G]

2122---2122---2122-

फ़ाइलातुन--फ़ाइलातुन--फ़ाइलातुन

बह्र-ए-रमल मुसद्दस सालिम

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ज़िंदगी इक रंज़-ओ-ग़म का सिलसि्ला है्

यह किसी के चाहने से कब रुका है ?


वक़्त अपना वक़्त लेता है यक़ीनन

वक़्त आने पर सुनाता फ़ैसला है ।


कौन सा पल हो किसी का आख़िरी पल

हर बशर ग़ाफ़िल यहाँ , किसको पता है ।


कारवाँ का अब तो मालिक बस ख़ुदा ही

राहबर जब रहजनों से जा मिला है ।


रोशनी का नाम देकर् हर गली ,वो

अंध भक्तों को अँधेरा बेचता है ।


आप की अपनी सियासत, आप जाने

क्या हक़ीक़त है, ज़माना जानता है ।


वह अना की क़ैद से बाहर न आया

वह अभी तक  ख़ुद से भी नाआशना है ।


वक़्त हो तो सोचना फ़ुरसत में ’आनन’

मजहबी इन नफ़रतों से क्या मिला है ।


-आनन्द.पाठक-

शुक्रवार, 24 जनवरी 2025

एक सूचना--आईने ग़ज़ल के

 

एक सूचना 



मित्रो !

 सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप लोगों के आशीर्वाद से और शुभकामनाओं से मेरी 12 वीं कृति --आईने ग़ज़ल के [ ग़ज़ल संग्रह]-- प्रकाशित हो कर आ गई है । यह मेरी ग़ज़ल श्रॄंखला 

में यह- छठा संग्रह- बाक़ी अन्य पुस्तकें अन्य विधाओं में है, यथा--व्यंग्य, माहिया, काव्य-गीतिका आदि।

आईने ग़ज़ल के - में 75 ग़ज़लें और कुछ गीत,कविताएँ, मुक्तक संकलित है । पुस्तक के आशीर्वचन के रूप में, शायर श्री तिलकराज कपूर जी दो शब्द लिखते हुए कहते हैं---


"---- ग़ज़ल मुख्यत: सांकेतिक भाषा में कही जाती है और बहुत से शे’र तो ऐसे होते हैं कि उनकी कहन एकाधिक स्तर पर देखा-समझा जा सकता है। ऐसा बहुत कुछ पाठक पर निर्भर करता है। मैं इस पुस्तक में प्रस्तुत किसी भी शे’र, ग़ज़ल, कविता, गीत और मुक्तक पर कुछ भी नहीं कह रहा हूँ, मात्र इसलिए कि उसके भावार्थ के प्रति मेरी समझ से कोई पूर्ण धारणा निर्मित न हो। मुझे उचित लगता है कि भावार्थ के आनन्द पर पाठक का पूर्ण अधिकार रहना चाहिए---"

अब यह पुस्तक प्रकाशित होने पर आनन्द पाठक और आनंद-पाठक का विषय है ---"।


मेरा मानना है कि ग़ज़लें अपने दौर का आईना होती हैं, अपने दौर की अक्स-ए-मसाइल भी। 

दिल का बयान करते ये आईने ग़ज़ल के ,

माजी के है मुशाहिद, नाज़िर हैं आजकल के |


ग़ज़ल हर दौर के सूरते-हाल की अक्कासी करती है। इतिहास की गवाह भी होती हैं और आईना भी। आईने ग़ज़ल के।  उर्दू शायरी मे “वली” दक्खनी से लेकर मीर—ग़ालिब--इक़बाल आदि अनेक शायरों से होते हुए वर्तमान काल में दुष्यन्त कुमार--वसीम बरेलवी—बशीर बद्र आदि अनेक शायरों तक, ग़ज़ल ने अपने सफ़र में कितने उतार-चढ़ाव देखे, राजमहलॊं , राजदरबारों  से चल कर चौराहों गलियों तक पहुँची फ़िर आम जन, जन-मानस तक पहुंची, रोज़ मर्रा की ज़िंदगी तक पहुँची। कई दौर आये-गए. कई तहरीकें आईं गईं मगर ग़ज़ल मरी नहीं. रुकी नहीं, थकी नहीं । हर हाल में ज़िंदा रही, अपनी सार्थकता बनाए रखी, अपनी लताफ़त, बलाग़त, नज़ाकत, मासूमियत अदब-ओ-तहज़ीब बचाये रखी। जल्वा बनाए रखा। यही कारण है ग़ज़ल आज भी उर्दू शायरी में निस्बत्तन सबसे लोकप्रिय [मक़्बूल] विधा है। कल भी थी, आज भी है और कल भी रहेगी। 


एहसास-ए-ज़िंदगी हूँ, जज़्बा भी हूँ, ग़ज़ल हूँ |,

हर दौर में हूँ निखरी, अहल-ए-ज़ुबाँ में ढल के |


तलवारों से समस्या का हल नहीं निकलता। गोलियाँ आदमी नहीं पहचानती,  ख़ून नहीं पहचानती, खून का रंग नहीं पहचानती, नस्ल नहीं पहचानती। युद्ध कोई हो, मरता आदमी है, मरती आदमियत है । ज़मीन वहीं रह जाती है, इन्सान मिट जाता है। इन्सानियत मिट जाती है।-मुहब्बत ही एक चीज है जो दिलों में ज़िंदा रहती है –

जंग-ओ-जदल से कुछ भी हासिल न होगा ’आनन’ ,

                 पैग़ाम-ए-इश्क़ सबको मिलकर सुनाएँ चल के ।


और दूसरी तरफ़? दूसरी तरफ़ ज़ाहिद हैं, वाइज़ है, बहुत कुछ समझाते है, जन्नत के ख़्वाब दिखाते है –हूरो की बात बताते है तो दिल दुविधा में पड़ जाता है


जिधर है दैर-ओ-हरम, है उधर ही मयख़ाना

किधर की राह सही है कोई बता न सका ।


और दिल है कि मानता नहीं । ग़ैब से कोई आवाज़ आती है, क्षितिज़ के पार से कोई बुलाता है-

 

हवाओं में घुली ख़ुशबू  पता उसका बताती है 

मुझे मत रोक ऎ ज़ाहिद ! मुझे उस ओर जाना है ।


ऐसी तमाम संवेदनाएं, भावनाएँ समय समय पर ग़ज़लों और गीतों के माध्यम से प्रस्फुटित होती रहीं जिन्हें मैं अपने ब्लाग, फ़ेसबुक, साहित्यिक मंचों पर लगाता रहा और सुधी पाठको का प्यार, स्नेह, आशीर्वाद. आशीष मिलता रहा। उत्साहवर्धक टिप्पणियाँ प्राप्त होती रहीं। आज उन्ही तमाम संवेदनाओं को समेटे हुए, मेरी यह 12 वीं कृति – आईने ग़ज़ल के –[ ग़ज़ल गीत संग्रह] आप के हाथों में सौंप रहा हूँ।

आप की टिप्पणियों, सुझावों, प्रतिक्रियाओं, विचारों का , मूल्यांकन का सदैव स्वागत रहेगा।

सादर


-आनन्द.पाठक- , गुरुग्राम, [मो0 880092 7181]

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नोट

पुस्तक प्राप्ति के लिए संपर्क कर सकते हैं—


श्री संजय कुमार

अयन प्रकाशन

जे-19/39, राजापुरी, उत्तम नगर

नई दिल्ली-110 059


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