शनिवार, 27 जुलाई 2024

अनुभूतियां 142/29

 :1

ये रिश्ते खत्म नहीं होते 

दो दिन की है यह बात नहीं
द्शकों से इसे सँभाला है
पल दो पल के जज़्बात नहीं

:2:
सब कस्मे, वादे एक तरफ़
कुछ सख़्त मराहिल एक तरफ़
लहरों से कश्ती जूझ रही
ख़ामोश है साहिल एक तरफ़ । 
( मराहिल = कई पड़ाव)

:3:
मेरे बारे में जो  समझा 
अच्छा सोचा, दूषित समझा
यह सोच सहज स्वीकार मुझे
तुमने मुझको कलुषित समझा ।

:4:
कुछ बातें ऐसी भी क्या थीं
जो मन मे ही रख्खा तुमने
खुल कर तुम कह सकती थी
तुमको न कभी रोका हमने 

-आनन्द पाठक-


शुक्रवार, 26 जुलाई 2024

अनुभूतियाँ 141/28

1
हर रोज यहाँ जीना मरना
सबको मिलती पहचान नही
क्या तुम को भी लगता ऐसा
जीना कोई आसान नहीं ? 

2
अफसाने हस्ती के फैले
खुशियों से लेकर मातम तक
कुछ ख्वाब छुपा कर बैठे थे
जाहिर न किए आखिर दम तक

3
मतलब की इस दुनिया में
रिश्तों का कोई अर्थ नहीं 
सदभाव अगर हो दो दिल में
लगता है जैसे स्वर्ग वहीं 

4
जाना था जिसको चला गया
रोके से भला रुकता भी क्या
मुड़ कर न मुझे देखा उसने
मैं आँखे नम करता भी क्या ।

-आनन्द.पाठक-

ग़ज़ल 405 [61-फ़] : नहीं अब रही गुफ़्तगू में लताफ़त

 ग़ज़ल 405 [61-फ़]

122---122---122---122


नहीं अब रही गुफ़्तगू में लताफत

वो करने लगा दोस्ती में सियासत


वो फोड़ा करे ठीकरा और के सर

उसे ख़ास हासिल है इसमें महारत


शजर छोड़ कर जो गए हैं परिंदे

नहीं अब रही लौट आने की आदत


जहाँ सीम-ओ-ज़र के दिखे चन्द टुकड़े

वहीं बेंच देगा वो अपनी शराफ़त ।


भले आँधियों ने गिराया हमे हो 

हमारी जड़े है अभी तक सलामत ।


चराग़ों में जितनी बची रोशनी है 

वही हौसले हैं वही मेरी ताक़त ।


यही बात होती न ’आनन’ गवारा

अमानत में करता है जब वह ख़यानत ।


-आनन्द.पाठक-

शब्दार्थ

सीम-ओ-ज़र = धन-दौलत, माल-पानी

अमानत में ख़यानत = विश्वासघात