गुरुवार, 22 दिसंबर 2022

अनुभूतियाँ : क़िस्त 40

 157

कितने तारे नभ में बिखरे

नहीं रोशनी हुई धरा पर,

हर तारे को भरम यही है

वहीं चाँद है, वही दिवाकर

 

158

लाखों तारे नील गगन में

एक सितारा तन्हा भी है ।

खुशियाँ बाँटी सबसे मिल कर

दर्द अकेले सहना भी है ।

 

159

बात तुम्हारी यूँ तो सही है

मौसम, सुख-दुख, आना, जाना

जीवन के इस रंग-मंच पर

जो भी है किरदार, निभाना

 

160

जख़्म भला है कौन सा ऐसा

वक़्त नही जिसको भर पाए

जख़्म दिया जो तुमने मुझको

 भरते भरते वह भर जाए ।  

-आनन्द.पाठक-          

अनुभूतियाँ : क़िस्त 39

 

153

प्यार, मुहब्बत, इश्क़, वफ़ा सब

बातें सभी किताबों में हैं,

कभी सामना हुआ नहीं पर

आते रहते ख़्वाबों में हैं ।

 

154

आँसू ग़म से भरे क़लम से

लिखा हुआ ख़त भेज न पाया ।

लिखने की तो बात बहुत थी

लेकिन भाव सहेज न पाया ।

 

155

जो भी होगा अच्छा होगा
कुछ तो होगा रब के मन में,

रोती क्यों है निश-दिन, पगली!

अच्छा ही होगा जीवन में।

 

156

कौन यहाँ सुनने को आतुर

मेरी यह अनकही कहानी
सुन ले कोई अगर इसे तो

आँखों में भर आए पानी ।


-आनन्द.पाठक-


 

अनुभूतियाँ : क़िस्त 38

 

149

इतने दिन तक तुम ने मुझको

जाँचा-परखा, देखा होगा ,

कितना साथ निभा पायेगा

दिल से अपने पूछा होगा ।

 

150

मेरी हसरत, तेरी हसरत

बीज प्यार का छुप छुप बोती,

आगे तो अब रब की मरजी

उल्फ़त होगी या ना होगी।

 

151

सूनेपन में दीवारों से

बातें करती यादें सारी

मैं कुछ कहता इससे पहले

बोल उठी तसवीर तुम्हारी ।

 

152

दिल का दरपन तोड़ गई तुम

हुआ आइना टुकड़ा टुकड़ा

चुन चुन कर बैठा हूँ कब से

किसे सुनाऊँ अपना दुखड़ा ।


-आनन्द पाठक-

अनुभूतियाँ : क़िस्त 37

 145

भूल तुम्हारी थी या मेरी

कौन इसे अब बतलाएगा ?

बात शेष जब हो ही गई तो

व्यर्थ कोई क्या समझाएगा ?

 

146

आने को तो आएगी ही

फिर बहार मन के उपवन में,

पर फ़ूलों पर रंग न होगा

पहले था जैसा जीवन में ।

 

147

दिल में कोई अगन प्रेम की

लगती है तो लग जाने दो,

चाह, तमन्ना, इश्क़, आरज़ू

धीरे धीरे जग जाने दो ।

 

148

छोड़ गई हो मुझे अकेला

तुमने दिया सहारा मुझको,

मैं तो कब का टूट चुका था

जीवन मिला दुबारा मुझको ।


-आनन्द.पाठक-


अनुभूतियाँ : क़िस्त 36

 

141

जो कुछ भी था पास हमारे

किया समर्पित तुम को मन से,

क्यों अर्पण स्वीकार नहीं था ?

रही शिकायत क्या पूजन से ?

 

142

भाव नही जब समझा तुमने

और न समझी दिल की सीरत,

उपहारों में देखी तुमने

उपहारों की क्या है कीमत ?

 

143

पीछे मुड़ कर क्या देखूँ मैं

बीत गया सो बीत गया अब

आशाओं की किरण सामने

राग नया है, गीत नया अब ।

 

 

 

144

चाहत को, एहसास, प्यार को

तुमने एक दिखावा समझा

विकल हॄदय के आर्तनाद को

तुमने एक छलावा  समझा ।


-आनन्द.पाठक-

बुधवार, 21 दिसंबर 2022

अनुभूतियाँ : क़िस्त 35

 

137

जाओ जिसके साथ है जाना

क़दम क़दम पर साथ निभाना,

मेरा शुभ आशीष तुम्हें है-

उससे भी ना खेल रचाना ।

 

138

लाखों तारे नभ में लेकिन

टूट गया जब एक सितारा

चाँद कहाँ सोचा करता है

टूटा किसका कहाँ सहारा

 

139

बीत गई यह सारी उमरिया

भाग दौड़ ही करते करते ,

सुबह शाम बस दिन काटा है

पाप-पुण्य से डरते डरते ।

 

140

जिस दिन लगे तुम्हें कुछ ऐसा

बहुत हो चुका साथ हमारा

उस दिन राह अलग कर लेना

कुछ न कहेगा दिल बेचारा ।


-आनन्द.पाठक-


 

अनुभूतियाँ : क़िस्त 34

 

133

हर दिन होते नए बहाने

सब बातों के पास तुम्हारे,

आना ही जब तुम्हें नहीं है

क्यों करती रहती हो इशारे ?

 

134

आया है ऋतुराज का मौसम

फूल खिले हैं गुलशन गुलशन,

तुम भी आ जाते- भूले से

दिल हो जाता खिल कर मधुवन ।

 

135

मजबूरी तो नहीं है कोई

खुला हुआ यह इक बन्धन है,

जब तुम चाहो लौट के आना

स्वागत है प्रिय ! अभिनन्दन है।

 

136

धरती खींच रही चन्दा को

चन्दा भी है खींचा करता

आकर्षण का सरल नियम है

इसमे कोई क्या कर सकता ?


-आनन्द.पाठक-


 

अनुभूतियाँ : क़िस्त 33

 

129

क्यों चिन्ता में डूबी रहती?

सबके साथ यही होता है,

कोई पा जाता है मंज़िल

कोई आजीवन रोता है ।

 

130

झूठ भले हो जितना सुन्दर

होते उसके पाँव नहीं है

सच तो चलता रहे निरन्तर

सच को मिलता छाँव नहीं है।

 

131

सच की राह बहुत लम्बी है

झूठ डगर पर हाथ मलोगी,

दोनों राह तुम्हारे सम्मुख

सोचो तुम किस राह चलोगी?

 

132

प्रश्न यही सौ बार उठा है

रिश्ता किसने तोड़ा पहले ,

इतने दिन तक साथ चली थी

फिर किसने मुँह मोड़ा पहले ।               


-आनन्द.पाठक


 

अनुभूतियाँ: किस्त 32

 

125

जब से तुम हमराह हुई हो

साथ हमारे ख़ुद ही मंज़िल ,

और हमे अब क्या करना है

आगे राह भले हो मुशकिल ।

 

126

’और मिल गया होगा कोई’

सोचा तुमने, कैसे सोचा ?

मन में तुम्हारे क्यों दुविधा है?

क्या मुझ पर अब नहीं भरोसा ?

127

लटें तुम्हारी छू कर आते

प्रात-समीरण गाते सरगम,

पूछ रहीं हैं कलियाँ कलियाँ

बेमौसम क्यों आया मौसम ?

 

128

पास भी आकर दूर हो गया

दिल ने जिसको चाहा हरदम

जाने किसकी नज़र लगी थी

जाने कैसा था वह जानम !


-आनन्द.पाठक-

अनुभूतियाँ : क़िस्त 31

 

121

अंगारों को गठरी में रख

बाँध सका है कौन आजतक ?

दो-धारी तलवार प्यार की

साध सका है कौन आजतक ?

 

122

आज खड़ा हूँ दोराहे पर

दोनों ही राहों में उलझन ,

एक राह में सुखद कल्पना

दूजी राह व्यथित रहता मन ।

 

123

मेरी चाहत एक दिखावा

कह कर तुम ने किया किनारा ,

शायद तुमने देखा ना हो

जीता कैसे दिल बेचारा ।

 

124

साथ अगर तुम छोड़ न दोगी

साथ तुम्हारे चल सकता हूँ ,

और किसी को चाहूँ, तौबा

तुमको नही बदल सकता हूँ ।


-आनन्द.पाठक-

रविवार, 18 दिसंबर 2022

अनुभूतियाँ : क़िस्त 30

 

117

राहगुज़र यह नहीं तुम्हारी

राह हमारे लिए व्यर्थ है ,

अगर सफ़र में साथ नहीं तुम

सफ़र हमारा, बिना अर्थ है ।

 

118

ॠषिवर, मुनिवर, ज्ञानी, ध्यानी

बात यही  सब समझाते हैं

कर्म तुम्हारा, नियति तुम्हारी

दोनों अलग अलग बातें हैं

 

119

पहले ही मालूम मुझे था

अपनी सीमाएँ मजबूरी

सफ़र शुरू होने से पहले

तुमने स्वयं बना ली दूरी ।

 

120

सूरज चढ़ता सुबह अगर तो

शाम शाम तक ढलना ही है,

समय चक्र है घूमा करता

मौसम यहाँ बदलना ही है ।


-आनन्द.पाठक-