मंगलवार, 28 मार्च 2023

गजल 318(83E) :फेंक कर जाल बैठे मछेरे यहाँ

 गजल 318(E)

212---212---212---212

फेंक कर जाल बैठे मछेरे यहाँ

बच के जाएँ तो जाएँ मछलियाँ कहाँ


 ग़ायबाना सही एक रिश्ता तो है

जब तलक है यह क़ायम जमी-आस्माँ


मैं जुबाँ से भले कह न पाऊँ कभी

मेरे चेहरे से होता रहेगा बयाँ


प्यास दर्या की ही तो नहीं सिर्फ है

क्यों समन्दर की होती नही है अयाँ


वस्ल की हो खुशी या जुदाई का गम

जिंदगी का न रुकता कभी कारवाँ


सैकडो रास्ते यूँ तो मक़सूद थे

इश्क का रास्ता ही लगा जाविदाँ


जानता है तू 'आनन' नियति है यही

आज उजाला जहाँ कल अंँधेरा वहाँ


-आनन्द पाठक-

शब्दार्थ

ग़ायबाना  =अप्रत्यक्ष

मक़सूद =अभिप्रेत

जाविदाँ  = नित्य, शाश्वत


रविवार, 26 मार्च 2023

ग़ज़ल 317 [82इ] : ख़त अधूरा लिखा उसका पूरा हुआ

 ग़ज़ल 317/82


212---212---212---212


ख़त अधूरा लिखा उसका पूरा हुआ

आँसुओं से कभी जब वो गीला हुआ


पढ़्ने वाले ने पढ़ कर समझ भी लिया

दर्द वह भी जो  खत में न लिख्खा हुआ


आप झूठी शहादत ही बेचा किए

यह तमाशा कई बार देखा हुआ


शोर ही शोर है बेसबब हर तरफ
कौन सुनता है किसको सुनाना हुआ


हर कली बाग़ की आज सहमी हुई

ख़ौफ़ का एक साया है फैला हुआ


अब परिन्दे भी जाएँ तो जाएँ कहाँ

साँप हर पेड़ पर एक बैठा हुआ


तुम भी ’आनन’ हक़ीक़त से नाआशना

सब की अपनी गरज़ कौन किसका हुआ



-आनन्द.पाठक-

गुरुवार, 23 मार्च 2023

ग़ज़ल 316[81 इ] : सच से उसका कोई वास्ता भी नहीं

 ग़ज़ल 316[81]

212---212---212----212

सच से उस का कोई वास्ता भी नहीं,

क्या हक़ीक़त उसे जानना  भी नहीं ।


उँगलियाँ वो उठाता है सब की तरफ़

और अपनी तरफ़ देखता भी नहीं ।


रंग चेहरे क्यों उड़ गया आप का ,

सामने तो कोई आइना भी नहीं ।


पीठ अपनी सदा थपथपाते रहे ,

क्या कहें तुमको कोई हया भी नहीं ।


टाँग यूँ ही अड़ाते रहोगे अगर ,

तुम को देगा कोई रास्ता भी नहीं ।


आप दाढ़ी मे क्या लग गए खोजने ,

मैने 'तिनका' अभी तो कहा भी नहीं ।


रेवड़ी बाँटने  ख़ुद  चले आप थे

किसको क्या क्या दिया कुछ पता ही नहीं


राज-सत्ता भी ’आनन’ अजब चीज़ है

मिल गई , तो कोई छोड़ता भी नहीं


-आनन्द पाठक-

बुधवार, 22 मार्च 2023

ग़ज़ल 315[80इ] : ये अलग बात है वो मिला तो नहीं--

 ग़ज़ल 315  [ 80इ]


212---212---212---212


ये अलग बात है वो मिला तो नहीं

दूर उससे मगर मैं रहा तो नहीं


एक रिश्ता तो है एक एहसास है

फूल से गंध होती जुदा तो नहीं


उनकी यादों मे दिल मुब्तिला हो गया

इश्क की यह कहीं इबतिदा तो नहीं


कौन आवाज़ देता है छुप कर मुझे

आजतक कोई मुझको दिखा तो नहीं 


ध्यान में और लाऊँ मैं किसको भला

आप जैसा कोई दूसरा तो नहीं


लाख ’तीरथ’ किए आ गए हम वहीं

द्वार मन का था खुलना, खुला तो नहीं


आप जैसा भी चाहें समझ लीजिए

वैसे ’आनन’ है दिल का बुरा तो नहीं


-आनन्द.पाठक-

ग़ज़ल 314 [79 इ] : आप ने जो भी कुछ किया होगा

 ग़ज़ल 314[79]


2122---1212---22


आप ने जो भी कुछ किया होगा

हश्र में उसका फ़ैसला  होगा


चाह कर भी न कह सका उस से

उसने आँखों से पढ़ लिया होगा


ख़ौफ़ खाया न जो दरिंदो से

आदमी देख कर डरा  होगा


दिल पे दीवार उठ गई होगी

घर का आँगन भी जब बँटा होगा


अब भरोसा भी क्या करे  कोई

राहजन ही जो रहनुमा होगा


जाहिलों की जमात में अब वो

ख़ुद को आरिफ़ बता रहा होगा


रोशनी की उमीद में ’आनन’

आख़िरी छोर पर खड़ा होगा


-आनन्द पाठक-



शुक्रवार, 10 मार्च 2023

ग़ज़ल 313[78] जब झूठ की ज़ुबान सभी बोलते रहे

 ग़ज़ल 313/78


221---2121---1221---212


जब झूठ की ज़ुबान सभी बोलते रहे

सच जान कर भी आप वहाँ चुप खड़े रहे


दिन रात मैकदा ही तुम्हारे खयाल में

तसबीह हाथ में लिए क्यों फेरते रहे


इन्सानियत की बात किताबों में रह गई

अपना बना के लोग गला काटते रहे


चेहरे के दाग़ साफ नजर आ रहे जिन्हे

इलजाम आइने पे वही थोपते रहे


क्या दर्द उनके दिल में है तुमको न हो पता

अपनी ज़मीन और जो घर से कटे रहे


कट्टर ईमानदार हैं जी आप ने कहा

घपले तमाम आप के अब सामने रहे


बस आप ही शरीफ़ हैं मजलूम हैं जनाब

मासूमियत ही आप सदा बेचते रहे


'आनन' को कुछ खबर न थी, मंजिल पे थी नजर

काँटे चुभे थे पाँव में या आबले रहे


-आनन्द.पाठक-

शब्दार्थ = नाम जपने की माला

मजलूम =पीड़ित


इसी ग़ज़ल को मेरी आवाज़ में सुने---