शनिवार, 20 अप्रैल 2013

एक ग़ज़ल 44 : मेरे ग़म में वो ...


212--212--212--212

मेरे ग़म में वो आँसू बहाने लगे
देख घड़ियाल भी मुस्कराने लगे

नाम उनका हवाले में क्या आ गया
’गाँधी-टोपी’ हैं फिर से लगाने लगे

रोशनी डूब कर तो तभी मर गई
जब अँधेरे गवाही में आने लगे

बोतलों में रहे बन्द ’जिन’ अब तलक
फिर चुनावों में बाहर हैं आने लगे

दल बदल आप करते रहे उम्र भर
बन्दरों को गुलाटी सिखाने लगे

उम्र भर जो कलम के सिपाही रहे
बोलियां ख़ुद वो अपनी लगाने लगे

आजकल जाने ’आनन’ को क्या हो गया
यूं ज़माने से क्यों ख़ार खाने लगे ?

आनन्द.पाठक
09413395592

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

एक ग़ज़ल 43 : चौक पे कन्दील जब...

एक ग़ज़ल : चौक पे कन्दील जब ....

2122-2122-212


चौक पे कन्दील जब जलने लगी

तब सियासत मन ही मन डरने लगी



आदिलों की कुर्सियाँ ख़ामोश हैं

भीड़ ही अब फ़ैसला करने लगी



क़ातिलों की बात तो आई गई

कत्ल पे ही शक ’पुलिस’ करने लगी



ख़ून के रिश्ते फ़क़त पानी हुए

’मां’ भी बँटवारे में है बँटने लगी



जानता हूं ये चुनावी दौर है

फिर से सत्ता दम मिरा भरने लगी



तुम बुझाने तो गये थे आग ,पर

क्या किया जो आग फिर बढ़ने लगी



इस शहर का हाल क्या ’आनन’ कहूँ

क्या उधर भी धुन्ध सी घिरने लगी ?



-आनन्द पाठक
09413395592




आदिल = न्यायाधीश