चुनावी दोहे 08
पलडे तो मेढक भरे, डंडी पर अभियोग ।
आवत ही हर्षन लगे ,नैनन भरे सनेह
'आनन' वहाँ न जाइए 'वोटन' बरसे मेह ।
सौदेबाजी चल रही चार दिना की ठाठ
राजनीति व्यापार हुई ,लोकतंत्र की हाट
होली से पहले हुआ होली का हुडदंग
पक्ष-विपक्ष करने लगा कीचड ले बदरंग
हर नेता समझा किया अपने कद को ताड़
सारे जोगी हो गए, मठ हो गयो उजाड़
बाहुबली का दर्द क्या , बूझ सकै ना कोय
संतवचन, साधुवचन, पूछत है का होय ?
जब से गया तिहाड़ तू, किया तमाशा रोज़
बाहर कैसे आ सके, नए बहाने खोज ।
-आनन्द.पाठक-