रविवार, 29 नवंबर 2020

ग़ज़ल 157 : सारी ख़ुशियाँ इश्क़-ए-कामिल

 ग़ज़ल 157 


मूल बह्र 21--121--121--122 =16

सारी ख़ुशियाँ इश्क़-ए-कामिल
होती हैं कब किसको  हासिल

जब से तुम हमराह हुए हो
साथ हमारे खुद  ही मंज़िल

और तलब क्या होगी मुझको
होंगी अब क्या राहें मुश्किल

प्यार तुम्हारा ,मुझ पे इनायत
वरना यह दिल था किस क़ाबिल

इश्क़ में डूबा पार हुआ वो
फिर क्या दर्या फिर क्या साहिल

शेख ! तुम्हारी बातें कुछ कुछ
क्यों लगती रहतीं है  बातिल

लौट के आजा ”आनन’ अब तो
किस दुनिया में रहता गाफ़िल 

-आनन्द.पाठक-


ग़ज़ल 156 : फिर वही इक नया बहाना है


बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़्बून महज़ूफ़
2122---1212---22


फिर वही इक नया बहाना है
जानता हूँ न तुम को आना है

छोड़िए दिल से खेलना ,साहिब
ये खिलौना भी टूट  जाना है

तुम भी आते तो बात बन जाती
आज मौसम भी आशिकाना है

छोड़ कर दर तिरा कहाँ जाऊँ
हर जगह सर नहीं  झुकाना है

आप से और क्या करूँ पर्दा
क्या बचा है कि जो छुपाना है

जिस्म का ये कबा न जायेगा
छोड़ इसको यहीं पे जाना है

कौन रुकता यहाँ किसी के लिए
एक ही राह सबको जाना है

आज तुमको हूँ अजनबी ’आनन’
राब्ता तो मगर पुराना है 

-आनन्द.पाठक--

कबा = चोला ,लबादा
राब्ता /राबिता= संबंध

गुरुवार, 26 नवंबर 2020

चन्द माहिए : क़िस्त 85

 क़िस्त 85


1

भँवरों की बात चली

कलियों को लगती

उनकी हर बात भली 


2

तुम छोड़ गए जब से 

सूनी हैं रातें

दिल रोता है तब से


3

हर हर्फ़ उभर आया

दिल पर कल मेरे

खोया था ख़त ,पाया


4

दो शब्द में सौ बातें

कितने ख़यालों से

गुज़री होंगी रातें 


5

एहसास् तो मुझको है

जितना है मुझको

क्या उतना तुझ् को है ?



चन्द माहिए : क़िस्त 84

 क़िस्त 84


1

कहने में हिचक क्या है !

यूँ न दबा रख्खो

इतनी भी झिझक क्या है !


2

जो कहनी था कह दी

समझो ना समझो

तुम बात  मेरे मन की


3

लिखने में अड़चन थी

मुझसे कह देते

मन में जो उलझन थी


4

उलफ़त का तक़ाज़ा है

धीरे से खुलता

दिल का दरवाज़ा है 


5

भँवरा तो भँवरा है

एक कली पर वो

रहता कब ठहरा है 



सोमवार, 9 नवंबर 2020

गीत 67 : आज दीपावली की सुखद रात है

 एक गीत : दीपावली पर-2020


आज दीपावली की सुखद रात है

प्रेम का दीप जलता  रहे उम्र भर


दिल में खुशियाँ हैं,उल्लास है,प्यार है

रात भी रोशनी  से नहाई  हुई

और तारे गगन में परेशान हैं

चाँद -सी कौन है,छत पे आई हुई ?


लौ लगी है तो बुझने न पाए कभी

मैं भी  रख्खूँ नज़र,तुम भी रखना नज़र


दीप महलों में या झोपड़ी में जले

एक सी रोशनी सबको मिलती सदा

एक दीपक जला कर रखो राह में

सब को मिलता रहे रोशनी का पता


हो अँधेरा जहाँ ,दीप रखना वहीं

हर गली मोड़ पर हर नगर हर डगर


द्वेष ,नफ़रत की दिल में लगी आग हो

तो जलाती रहेगी तुम्हे उम्र भर 

यह अँधेरा मिटेगा क्षमा प्यार से -

प्रीति की ज्योति दिल में जला लो अगर


प्रेम,करुणा, दया दिल में ज़िन्दा रहे

और चलता रहे रोशनी का सफ़र


 आज दीपावली की है पावन घड़ी, प्रेम का दीप जलता  रहे उम्र भर


-आनन्द.पाठक-