:1:
माना कि तमाशा है
कार-ए-जहाँ में सब
फिर भी इक आशा है
:2:
दरपन तो दरपन है
झूठ नहीं बोले
जो बोल रहा मन है ?
:3:
छाई जो घटाएँ हैं
दिल न बहक जाए
सन्दल सी हवाएँ हैं
:4:
जितना देखा है फ़लक
उतना ही उसकी
आँखों में सच की झलक
:5:
कैसा ये नशा ,किसका ?
कब देखा उस को ?
एहसास है बस जिसका
-आनन्द पाठक-
[सं 13-06-18]
माना कि तमाशा है
कार-ए-जहाँ में सब
फिर भी इक आशा है
:2:
दरपन तो दरपन है
झूठ नहीं बोले
जो बोल रहा मन है ?
:3:
छाई जो घटाएँ हैं
दिल न बहक जाए
सन्दल सी हवाएँ हैं
:4:
जितना देखा है फ़लक
उतना ही उसकी
आँखों में सच की झलक
:5:
कैसा ये नशा ,किसका ?
कब देखा उस को ?
एहसास है बस जिसका
-आनन्द पाठक-
[सं 13-06-18]