मंगलवार, 28 सितंबर 2021

ग़ज़ल 197 : वह अँधेरों में इक रोशनी है

 212---212--212--2

फ़ाइलुन-फ़ाइलुन-फ़ाइलुन-फ़अ’

बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन महजूज़


ग़ज़ल 197


वह अँधेरे में इक रोशनी है

एक उम्मीद है, ज़िन्दगी है


एक दरिया है और एक मैं हूँ

उम्र भर की मेरी तिश्नगी है


नाप सकते हैं हम आसमाँ भी

हौसलों में कहाँ कुछ कमी है


ज़िक्र मेरा न हो आशिक़ी में

यह कहानी किसी और की है


लौट कर फिर वहीं आ गए हो

राहबर ! क्या यही रहबरी है ?


सर झुका कर ज़ुबाँ बन्द रखना

यह शराफ़त नहीं बेबसी है


आजकल क्या हुआ तुझ को ’आनन’

अब ज़ुबाँ ना तेरी आतशी है ।


-आनन्द.पाठक- 

शनिवार, 25 सितंबर 2021

ग़ज़ल 196 : किसी से वफ़ाई ,किसी से ख़फ़ा हूँ

  ग़ज़ल 196

122----122-----122------122


किसी से वफाई किसी से ख़फ़ा हूँ

किया जो नहीं जुर्म उसकी सज़ा हूँ


किसी के लिए एक बदनाम शायर

किसी के लिए एक दस्त-ए-दुआ हूँ


कहीं भी रहो ढूँढ लेंगी निगाहें,

भले तुम छुपे, मैं न तुमसे छुपा हूँ


ज़रा आसमाँ से उतर कर तो देखो

तुम्हारे लिए क्या से क्या हो गया हूँ


भरी बज़्म में ज़िक्र तेरा न आया

वो महफ़िल वहीं छोड़ कर आ गया हूँ


मुझे क्या है लेना कलीसा हरम से

मुहब्बत में तेरी हुआ मुबतिला हूँ


अगर तुम ज़ुबाँ से सुनाना न चाहो

निगाहों से अपनी तुम्हें पढ़ रहा हूँ


न आलिम न मुल्ला न उस्ताद ’आनन’

अदब से मुहब्बत अदब आशना हूँ ।


-आनन्द.पाठक-


ग़ज़ल 195 : जो शख़्स पढ़ रहा था ख़ुशगवार आँकड़े--

 2212---1212---1212--12


ग़ज़ल 195


जो शख़्स पढ़ रहा था ख़ुशगवार आँकड़े

वह शख़्स मर गया कतार में खड़े खड़े


पूछा किसी ने हाल मेरी ज़िंदगी का जब

दो बूँद आँसुओं के बारहा निकल पड़े


गुमनामियों में खो गए किसी को क्या ख़बर

तारीकियॊं से जो तमाम उम्र थे लड़े


कालीन-सा वो बिछ गए बस एक ’फोन’ पर

जिनसे उमीद थी कि लेंगे फ़ैसले कड़े


पुतले थे बीस फ़ुट के शह्र में लगे हुए

बौनी थी जिनकी शख़्सियत, थे नाम के बड़े


रहबर तुम्हारी रहबरी में शक तो कुछ नहीं

जाने को था किधर कि तुम किधर को चल पड़े


’आनन’ तुम्हारी बात में न वो तपिश रही

दरबारियों के साथ जब से तुम हुए खड़े


-आनन्द.पाठक-


ग़ज़ल 194 : ख़ामोश रहोगे तुम--दुनिया तो ये पूछेगी

 ग़ज़ल 194

221---1222 // 221-1222


ख़ामोश रहोगे तुम,  दुनिया तो ये पूछेगी

कल तुम भी रहे शामिल, क्या आग लगाने में ?


तू लाख गवाही दे, सच ला के खड़ा कर दे

आदिल ही लगा जब ख़ुद, क़ातिल को बचाने में


मसरूफ़ बहुत हो तुम, मसरूफ़ इधर हम भी

नाकाम रहे दोनो, इक पल को चुराने में


इमदाद तो करता है, एहसाँ भी जताता है

ग़ैरत है जगी अपनी, दस्तार बचाने में


दो-चार क़दम पर था, दर तेरा मेरे दर से

तय हो न सका वह भी, ता उम्र ज़माने में


सुनने में लगे आसाँ, यह इश्क़ इबादत है

हो जाती फ़ना साँसे, इक प्यार निभाने में


वो ज़िक्र न आयेगा, उन वस्ल की रातों का

क्या ढूँढ रही हो तुम, ’आनन’ के फ़साने में


-आनन्द.पाठक- 

शुक्रवार, 24 सितंबर 2021

कविता 10 [03] " स्मृति वन से

 

कविता 10 [03]

 

स्मृति वन से

एक पवन का झोंका आया

गन्ध पुरानी लेता आया ।

लगा खोलने जीवन की पुस्तक के पन्ने

हर पन्ना कुछ बोल रहा था।

कुछ पन्ने थे खाली खाली

कटे फ़टे कुछ, स्याही बिखरे

कुछ पन्नों पर कटी लाइने।

इक पन्ने पर अर्ध-लेख था-

एक अधूरी लिखी कहानी

जो लिखना था, लिख न सका था

जो न लिखा था पढ़ सकता हूँ

यादें फिर से गढ़ सकता हूँ ।

कुछ गुलाब की पंखुड़ियाँ थीं

हवा ले गई उसे उड़ा कर

अब न ज़रूरत उसको मेरी

यादें बस रह गई घनेरी

वह गुलाब-सी,

सजी किसी के गुलदस्ते में।

जीवन कहाँ रुका करता है

सब अपने अपने रस्ते में

यादों का क्या-

यादें आती जाती रहतीं

आँखें नम कर जाती रहतीं

 

-आनन्द पाठक-

गुरुवार, 23 सितंबर 2021

कविता 09[02] : फूल बन कर कहीं खिले होते

 

कविता 09 [02]


फूल बन कर कहीं खिले होते

जनाब ! हँस कर कभी मिले होते

किसी की आँख के आँसू

बन कर बहे होते

पता चलता

यह भी ख़ुदा की बन्दगी है

क्या चीज़ होती ज़िन्दगी है ।


मगर आप को फ़ुरसत कब थी

साज़िशों का ताना-बाना

बस्ती बस्ती आग लगाना

थोथे नारों से

ख्वाब दिखाना।

सब चुनाव की तैयारी है

दिल्ली की कुर्सी प्यारी है।

 

-आनन्द.पाठक-

प्र 15-सितम्बर-22

 

अनुभूतियाँ : क़िस्त 12

 

 

क़िस्त 12

 

1

साथ दिया है तूने तना

मुझ पर रही इनायत तेरी

तुझे नया हमराह मिला है

फिर क्या रही ज़रूरत मेरी ।

 

2

रहने दे ’आनन’ तू अपना

प्यार मुहब्बत जुमलेबाजी

मेरे चाँदी के सिक्कों पर

भारी कब तेरी लफ़्फ़ाज़ी ?

 

3

दिल पर चोट लगी है ऐसे

ख़ामोशी से डर लगता है

सब तो अपने आस-पास हैं

लेकिन सूना घर लगता है ।

 

4

इक दिन तो यह होना ही था

कौन नई सी बात हुई  है ,

जिसको ख़ुशी समझ बैठा था

वह ग़म की सौगात हुई है  

 

-आनन्द.पाठक-

गुरुवार, 16 सितंबर 2021

कविता 08[01] : कितना आसान होता है

 

-कविता-08 [01]

 

कितना आसान होता है

किसी पर कीचड़ उछालना

किसी पर उँगली उठाना

आसमान पर थूकना

पत्थर फेकना।

मासूम परिन्दों को निशाना बनाना

कितना आसान होता है

किसी लाइन को छोटा करना

उसे मिटाना

आग लगाना, आग लगा कर फिर फ़ैलाना

अच्छा लगता है

अपने को कुछ बड़ा दिखाना।

बड़ा समझना

तुष्टि अहम की हो जाती है

उसको सब अवसर लगता है

सच से उसको डर लगता है ।

 -आनन्द.पाठक-  

प्र0 11-04-22

शनिवार, 11 सितंबर 2021

अनुभूतियाँ : क़िस्त 11

 

क़िस्त 11

 

1

दो बरतन जब पास पास हों

लाजिम उनका टकराना है।

छोड़ो छॊटी-मोटी बातें -

बोलो वापस कब आना है ?

 

2

दशकों का था साथ पुराना,

चाँदी से तुम मोल लगाए ।

सत्य यही है अगर तुम्हारा

तो फिर कौन तुम्हें समझाए?

 

3

चाँद सितारों वाली बातें,

लिख्खी हुई किताबों में हैं।

चाँद तोड़ कर लाने वाली

बातें केवल बातॊं में हैं ।

 

4

एक नहीं मैं ही दुनिया में

जिसकी कोई व्यथा पुरानी ।

एक नहीं. दो नहीं, हज़ारों

मेरी जैसी  विरह कहानी ।

 

-आनन्द.पाठक-

 

गुरुवार, 9 सितंबर 2021

एक सूचना :मेरी किताब : सुन मेरे माही !- का प्रकाशन


 

 एक सूचना =  पुस्तक प्रकाशन के सन्दर्भ में

मित्रो !

सूचित करते हुए हर्ष की अनुभूति हो रही है  कि आप लोगों के आशीर्वाद और शुभकामनाओं से मेरी सातवीं  पुस्तक -" सुन, मेरे माही ! "- [ माहिया- संग्रह ] प्रकाशित हो कर आ गई ।

इस से पूर्व मेरी -6-पुस्तकें [ 3- कविता/ग़ज़ल/गीत संग्रह और 3- हास्य व्यंग्य़ संग्रह] प्रकाशित हो चुकी हैं । इन सभी पुस्तकों का प्रकाशन "अयन प्रकाशन, नई दिल्ली " ने किया है ।

"अयन-प्रकाशन’ को इस हेतु बहुत बहुत धन्यवाद।

 

इस संग्रह में मेरी 450 माहिए संकलित है जिसमे से कुछ माहिए आप लोगो ने इस मंच पर समय समय पर अवश्य पढ़ी होंगी ।

इस संग्रह में मैने माहिए के उदभव, विकास और माहिए के वज़न और बह्र के बारे में भी चर्चा की है।

आशा करता हूँ कि इस संग्रह को भी पूर्व की भाँति आप सभी लोगो का स्नेह और आशीर्वाद मिलता रहेगा।

 

पुस्तक प्राप्ति के लिए अयन प्रकाशन से सम्पर्क किया जा सकता है । उनका पता है संलग्न है ।

whatsapp no = 92113 12372 [ संजय जी ]

{नोट : प्रकाशक यह पुस्तक शीघ्र ही Amazon पर उपलब्ध करा देगा ]

 

पुस्तक मिलने का पता –

 अयन प्रकाशन

1/20 महरौली, नई दिल्ली 110 030


शाखा—जे-19/39 राजापुरी. उत्तम नगर , नई दिल्ली-59

Email : ayanprakashan@gmail.com

Website : www.ayanprakashan.com

 

   -सादर-

-आनन्द.पाठक-