शनिवार, 12 जुलाई 2025

चन्द माहिए 108/18 : सावन पर

 सावन आया --- चन्द माहिए सावन पे
क़िस्त:  108/18
:1:
शिव भक्तों के दम से 
गूँज रहीं राहें
जय भोले बम बम से ।
2
सावन में मन निर्मल
काँवड़िए निकले
ले ले कर पावन जल ।
:3:
सावन में पावन काम
काँवड़ ले जाना
भोले बाबा के धाम ।
:4:
जय जय बाबा भोले 
गूँज उठा मंदिर
 जब मिल कर सब बोले ।
:5:
लेकर अपना काँवर
आया हूँ  मैं भी
भोले बाबा के घर ।
-आनन्द.पाठक-

कविता 031: एक आदमी सड़क पर

 [ स्व0] कवि धूमिल जी की प्रेरणा से और  क्षमा याचना सहित ]

कविता 031: एक आदमी सड़क पर---


एक आदमी सड़क पर
दूसरे आदमी को पीट रहा है।
एक तीसरा आदमी भी है
जो न पीट रहा है, न पिट रहा है
न रोक रहा है।
वह मोबाइल से *रील* बना रहा है चैन से।
मैं पूछता हूँ वह तीसरा आदमी कौन है?
समाज इस पर मौन है ।


-आनन्द.पाठक-

शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

चन्द माहिए 107/17

 चन्द माहिए : 107 /17

:1:

प्रवचन तो अच्छा है
लेकिन मन भी क्या
उतना ही सच्चा है ?

:2:
क्यों  फेर रहा माला
साफ़ ज़रा कर लें
मन पर जो पड़ा जाला

:3:
मन साध नहीं ्पाया
चंदन टीका ही
केवल तुझको भाया

:4:
कंठी टीका माला
दंड कमंडल भी
मन फिर भी है काला

:5:
दुनिया को सिखाते हो
भगवाधारी बन
खुद कब अपनाते हो ?

-आनन्द पाठक-

सोमवार, 7 जुलाई 2025

ग़ज़ल 442 [16-G) : आदमी में शौक़-ए-उल्फ़त --

 ग़ज़ल  442[16-जी] : आदमी में शौक़-ए-उलफ़त 

2122---2122---2122---212


आदमी में शौक़-ए-उल्फ़त और रहमत चाहिए
सोच में हो सादगी, दिल में दियानत चाहिए ।


साँस ले ले कर ही जीना ज़िंदगी काफी नहीं 

ज़िंदगी के रंग में कुछ और रंगत  चाहिए ।


अह्ल-ए-दुनिया आप की बातें सुनेगे  एक दिन

आप की आवाज़ में कुछ और ताक़त चाहिए ।



जब कि चेहरे पर तुम्हारे गर्द भी है दाग़ भी

सामने जब आईना , फिर क्या वज़ाहत चाहिए ।


कश्ती-ए-हस्ती हमारी और तूफ़ाँ सामने

ख़ौफ़ क्या, बस आप की नज़र-ए-इनायत चाहिए।



जानता हूँ ज़िंदगी की राह मुशकिल, पुरख़तर

आप की बस मेहरबानी ता कयामत  चाहिए ।


ढूँढता हर एक दिल ’आनन’ सहारा , हमनशीं

मौज-ए-दर्या को भी साहिल की कराबत चाहिए ।


-आनन्द.पाठक-





बुधवार, 2 जुलाई 2025

ग़ज़ल 441-[15-जी ]: उनको अना ग़ुरूर का ऐसा चढ़ा--

 ग़ज़ल 441[15-G] : 

221---2121---1221---212


उनको अना, गुरूर का ऐसा चढ़ा नशा

ख़ुद को वो मानने लगे हैं आजकल ख़ुदा ।


हर दौर के उरूज़ का हासिल यही रहा

परचम बुलंद था जो कभी खाक में मिला ।


रुकता नहीं है वक़्त किसी शख़्स के लिए

तुम कौन तीसमार हो औरों से जो जुदा ।


जिसकी क़लम बिकी हो, ज़ुबाँ भी बिकी हुई

सत्ता के सामने वो भला कब हुआ खड़ा ।


जो सामने सवाल है उसका न ज़िक्र है

बातें इधर उधर की वो कब से सुना रहा ।


क़ायम है ऎतिमाद तो क़ायम है राह-ओ-रब्त

वरना तो आदमी न किसी काम का हुआ ।



’आनन’ ज़रा तू सोच में रद्द-ओ-बदल तो कर

फिर देख ज़िंदगी  कभी  होती नहीं  सज़ा ।



-आनन्द.पाठक-

शब्दार्थ 
उरूज़ = उत्त्थान, विकास

ऎतिमाद = विश्वास , भरोसा

राह-ओ-रब्त = मेल जोल, मेल मिलाप, दोस्ती