सोमवार, 15 जनवरी 2024

ग़ज़ल 353[28] : ज़िंदगी का फ़लसफ़ा कुछ और है--



ग़ज़ल 353 [28]

2122---2122---212


ज़िंदगी का फ़लसफ़ा कुछ और है

आदमी का सोचना कुछ  और है ।


बात वाइज़ की सही अपनी जगह

दर हक़ीकत सामना कुछ और है ।


तुम भले ही जो कहो, हँस कर कहो

जर्द चेहरा कह रहा कुछ  और है।


क्यों तुम्हे दिखता नहीं चेहरे का सच

क्या तुम्हारा आइना कुछ और है ?


दिल कहे जब भी कहे तो सच कहे

लग रहा तुमने सुना कुछ और है ।


वस्ल के पहले ख़याल-ए-वस्ल हो

फिर तड़पने का मज़ा कुछ और है।


प्रेम का मतलब नहीं 'आनन' हवस

प्रेम का तो रास्ता कुछ और है ।


-आनन्द.पाठक-


शनिवार, 13 जनवरी 2024

ग़ज़ल 352 [27] : नहीं वो बात रही--

 


ग़ज़ल 352

1212---1122---1212---22


नहीं वो बात रही, क्या करूँ गिला कोई,

तेरे ख़याल में अब और आ गया  कोई ।


मिले जो आज तलक सबकी थी गरज अपनी

गले लगा ले जो मुझको,नहीं मिला कोई ।


दयार आप का हो या दयार-ए-यार कहीं ,

निगाह-ए-पाक ने कब फर्क है किया कोई !


करम हो आप का जिस पर वो ख़ुश रहा, वरना

अजाब-ए-सख़्त के कब तक यहाँ बचा कोई ।


ज़ुबान बेच दी जिसने खनकते सिक्कों पर

गिरा जो ख़ुद की नज़र से न उठ सका कोई ।


कहाँ कहाँ से न गुज़रे तलाश-ए-हक़ में, हम

सही मुक़ाम न अबतक कहीं मिला कोई ।


सफ़र हयात का अब ख़त्म हो रहा ’आनन’

क्षितिज के पार से मुझको बुला रहा कोई ।


-आनन्द.पाठक-

बुधवार, 10 जनवरी 2024

गीत 81 : शरण में राम की आना [ भाग-1]


1222---1222---1222---1222

प्राण प्रतिष्ठा [ 22 जनवरी ] के पावन अवसर पर--श्री राम लला के पावन चरणों मे 

मेरी लेखनी की  एक अकिंचन भेंट ------


एक गीत


उदासी मन  पे जब छाए , अँधेरा फैलता जाए ,

तनिक भी तुम न घबराना. शरण में राम की आना।


करें जब राम का सुमिरन

कटे बंधन सभी ,प्यारे !

हृदय में ज्योति जग जाए

लगें सब लोग तब न्यारे ।


अकेला मन भटक जाए, समझ में कुछ नही आए,

सही जब राह हो पाना, शरण में राम की  आना ।


राम के नाम की महिमा,

सदा नल-नील ने जानी ,

कि तरने लग गए पत्थर

झुका सागर भी अभिमानी


अहम जब सर पे चढ़ जाए, सभी बौने नज़र आएँ

पड़े तुमको न पछताना, शरण में राम की आना ।


जगत इक जाल माया का,

फँसा रहता तू जीवन भर

कभी तो सोच ऎ प्राणी !

है करना पार भव सागर ।


जगत जब तुमको भरमाए, कि माया तुमको ललचाए

धरम को भूल मत जाना, शरण में राम की  आना ।


-आनन्द.पाठक-