शनिवार, 13 जनवरी 2024

ग़ज़ल 352 [27] : नहीं वो बात रही--

 


ग़ज़ल 352

1212---1122---1212---22


नहीं वो बात रही, क्या करूँ गिला कोई,

तेरे ख़याल में अब और आ गया  कोई ।


मिले जो आज तलक सबकी थी गरज अपनी

गले लगा ले जो मुझको,नहीं मिला कोई ।


दयार आप का हो या दयार-ए-यार कहीं ,

निगाह-ए-पाक ने कब फर्क है किया कोई !


करम हो आप का जिस पर वो ख़ुश रहा, वरना

अजाब-ए-सख़्त के कब तक यहाँ बचा कोई ।


ज़ुबान बेच दी जिसने खनकते सिक्कों पर

गिरा जो ख़ुद की नज़र से न उठ सका कोई ।


कहाँ कहाँ से न गुज़रे तलाश-ए-हक़ में, हम

सही मुक़ाम न अबतक कहीं मिला कोई ।


सफ़र हयात का अब ख़त्म हो रहा ’आनन’

क्षितिज के पार से मुझको बुला रहा कोई ।


-आनन्द.पाठक-

कोई टिप्पणी नहीं: