सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

ग़ज़ल 217 : जीवन के सफ़र में यूँ--

 ग़ज़ल 217

221--1222 // 221-1222


जीवन के सफ़र में यूँ , तूफ़ान बहुत होंगे

बंदिश भी बहुत होंगी, अरमान बहुत होंगे


घबरा के न रुक जाना ,दुनिया के मसाइल से

दस राह निकलने के इमकान बहुत होंगे


लोगों की बुरी नज़रें, बाग़ों में, बहारों पर

गुलशन की तबाही के अभियान बहुत होंगे


जो चाँद सितारों की बातों में है खो जाते

वो सख़्त हक़ीक़त से अनजाब बहुत होंगे


कुछ आग लगाते हैं, कुछ लोग हवा देते

इनसान ज़रा ढूँढों, इनसान बहुत होंगे


ताक़त वो मुहब्बत की पत्थर को ज़ुबाँ दे दे

जिनको न यकीं होगा, हैरान बहुत होंगे


हर मोड़ कसौटी है इस राह-ए-तलब ’आनन’

जो सूद-ओ-ज़ियाँ देखे, नादान बहुत होंगे


-आनन्द.पाठक-


शनिवार, 12 फ़रवरी 2022

ग़ज़ल 216 : झूठ पर झूठ वह बोलता आजकल

 ग़ज़ल 216 : 


212---212---212---212

फ़ाइलुन--फ़ाइलुन--फ़ाइलुन--फ़ाइलुन

बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन सालिम

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झूठ पर झूठ वह बोलता आजकल

क़ौम का  रहनुमा बन गया आजकल


चन्द रोज़ा सियासत की ज़ेर-ए-असर

ख़ुद को कहने लगा है ख़ुदा आजकल


साफ़ नीयत नहीं, ना ही ग़ैरत बची

शौक़ से दल बदल कर रहा आजकल


उसकी बातों में ना ही सदाक़त रही

उसको सुनना भी लगता सज़ा आजकल


तल्ख़ियाँ बढ़ गई हैं ज़ुबानों में अब

मान-सम्मान की बात क्या आजकल


आँकड़ों की वह घुट्टी पिलाने लगा

आँकड़ों से अपच हो गया आजकल


यह चुनावों का मौसम है ’आनन’ मियाँ

खोल कर आँख चलना ज़रा आजकल 



-आनन्द.पाठक-

शब्दार्थ 

ज़ेर-ए-असर = प्र्भाव के अन्तर्गत

सदाक़त      = सच्चाई


शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

ग़ज़ल 215 [81]: दूर जब रोशनी नज़र आई

 ग़ज़ल 215 [81]

2122---1212---22


दूर जब रोशनी नज़र आई

’तूर’ की याद क्यॊं उभर आई ?


लाख रोका, नहीं रुके जब तुम

वक़्त-ए-रुख़सत ये आँख भर आई


ज़िन्दगी के तमाम पहलू थे

राह-ए-उलफ़त ही क्यॊं नज़र आई ?


सर्द रिश्ते पिघलने वाले हैं

धूप आँगन में है उतर आई


तेरे दर पर हम आ गए, गोया

ज़िन्दगी, ज़िन्दगी के घर आई


उम्र अब तो गुज़र गई अपनी

शादमानी न लौट कर आई


दिल तेरा क्यों धड़क रहा ’आनन’

उनके आने की क्या ख़बर आई ?


-आनन्द.पाठक-


रविवार, 6 फ़रवरी 2022

ग़ज़ल 214 [27] : दीवार खोखली है बुनियाद लापता है

 [अभी संभावना है--27]


221--2122  // 221--2122

 ग़ज़ल 214[27]


दीवार खोखली है,  बुनियाद लापता है

वह सोचता है खुद को, दुनिया से वह बड़ा है


मझधार में पड़ा है , लेकिन ख़बर न उसको

कहता है ’मुख्यधारा’ के साथ बह रहा  है


आतिश ज़ुबान उसकी, है चाल कजरवी भी

अपने गुमान में है, कुरसी का यह नशा है


वह देखता भी दुनिया तो देखता भी कैसे

जब भाट-चारणॊं से दिन-रात वह घिरा है 


महरूम रोशनी से,  ताज़ी नई हवा से

अपने मकान की वह खिड़की न खोलता है 


उसकी ज़ुबाँ में शामिल ग़ैरों की भी ज़ुबाँ थी

जितनी भरी थी चाबी उतना ही वह चला है


वह ख़ून की शहादत में ढूँढता  सियासत

जाने सबूत की क्यों पहचान माँगता है ?


ग़मलों में कब उगे हैं बरगद के पेड़ ’आनन’

लेकिन उसे भरम है क्या सोच में रखा है ।


-आनन्द.पाठक-


बाबे-सुखन 22-02-22



ग़ज़ल 213[15] : वह बार बार काठ की हंडी चढ़ा रहा

 [अभी संभावना है -15]


ग़ज़ल 213 


221---2121---1221---212


वह बार बार काठ की   हंडी चढ़ा रहा

क्या क्या न राजनीति में खिचड़ी पका रहा


पाँवों तले ज़मीन तो उस की खिसक चुकी

जाने ख़ुदा कि पाँव पे कैसे टिका रहा ?


शब्दों के जाल बुन रहा था पाँच साल से

आया है जब चुनाव तो मुझको फँसा रहा


थाना है उसके हाथ में , आदिल भी जेब में

क़ानून की किताब का तकिया लगा रहा


भारत का ’संविधान’ तो ’बुधना’ के लिए है

ख़ुद ही वह ’संविधान ’ है सबको बता रहा


इक पाँव कठघरे में हैं ,इक पाँव जेल में

लीडर नया है , क़ौम को रस्ता दिखा रहा


’दिल्ली’ चला गया है वो नज़रें बदल गईं

’आनन’ चुनाव बाद तू किसको बुला रहा


-आनन्द.पाठक-


बुधवार, 2 फ़रवरी 2022

अनुभूतियाँ : क़िस्त 16

 अनुभूतियाँ :क़िस्त 16 


1

कितनी बार कहा है तुम से 

भले बुरे का ज्ञान नहीं है, 

दुनिया है तो लूटेगी ही

जीवन-पथ आसान नहीं है ।


2

मेरी छोड़ो, मेरा क्या है

मैं हूँ, दिल है, तनहाई है,

आह नहीं भर सकता हूँ मैं

उस मे तेरी रुसवाई है ।

 

3

’शुचिता’ हो जब मन के अन्दर

मन का दरपन और निखरता,

रंग प्रेम का जब मिलता है 

निर्मल जीवन और सँवरता ।


64

दुनिया ख़त्म नहीं हो जाती

टूट गया दिल अगर कभी तो

यह तो मन की एक अवस्था

वरना आगे राह अभी तो ।


-आनन्द.पाठक-