क़िस्त 77
1
जब जान ही है लेना
और तरीक़े भी
बस रूठ के हँस देना
2
तुम पर न अगर मरता
तुम ही कहों जानम
दिल आख़िर क्या करता ?
3
कुछ चाह नहीं दिल में
तुम को ही देखूँ
बस माह-ए-कामिल में
4
इक प्यार को पा लेना
जैसे काँटॊं को
पलको से उठा लेना
5
दुनिया है सियह्खाना
शर्त रही ये भी
बेदाग़ निकल आना
1
जब जान ही है लेना
और तरीक़े भी
बस रूठ के हँस देना
2
तुम पर न अगर मरता
तुम ही कहों जानम
दिल आख़िर क्या करता ?
3
कुछ चाह नहीं दिल में
तुम को ही देखूँ
बस माह-ए-कामिल में
4
इक प्यार को पा लेना
जैसे काँटॊं को
पलको से उठा लेना
5
दुनिया है सियह्खाना
शर्त रही ये भी
बेदाग़ निकल आना
-आनन्द.पाठक-