क़िस्त 74
1
इक हुस्न-ए-क़यामत है
जान पे बन आई
आँखों की शरारत है
3
अब ज़ौर के क़ाबिल है
मान लिया तुम ने
मक़्रूज़ हुआ दिल है
2
रुखसार पे काला तिल
लगता है जैसे
तुम से भी बड़ा क़ातिल
4
आँखों का नशा क्या है ?
जानोगे कैसे ?
जीने का मज़ा क्या है ?
5
फूलों सा बदन तेरा
उस पर से बोझिल
खुशबू का वज़न तेरा
-आनन्द पाठक-
इक हुस्न-ए-क़यामत है
जान पे बन आई
आँखों की शरारत है
3
अब ज़ौर के क़ाबिल है
मान लिया तुम ने
मक़्रूज़ हुआ दिल है
2
रुखसार पे काला तिल
लगता है जैसे
तुम से भी बड़ा क़ातिल
4
आँखों का नशा क्या है ?
जानोगे कैसे ?
जीने का मज़ा क्या है ?
5
फूलों सा बदन तेरा
उस पर से बोझिल
खुशबू का वज़न तेरा
-आनन्द पाठक-
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