क़िस्त 67
1
माया की राहों में
क़ैद हुए हम हैं
अपने ही गुनाहों में
2
अपना भी कोई होता
दिल मिल कर जिससे
हँसता ,गाता ,रोता
3
सब दीन धरम ईमां
नाक़िस हो जाते
जब राह-ए-गुनह इंसां
4
मन रहता उलझन में
जाऊँगी कैसे ?
सौ दाग़ है दामन में
5
है कौन यहाँ ऐसा
चाह नहीं जिसको
सोना-चाँदी-पैसा
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