गुरुवार, 31 अगस्त 2023

ग़ज़ल 336/11 : इश्क़ क्या है ? न मुझको बताया करो

 ग़ज़ल 336/11


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इश्क़ क्या है? न मुझको बताया करो

जो पढ़ी हो, अमल में भी लाया  करो  ।


गर ज़ुबाँ से हो कहने में दुशवारियाँ

तो निगाहों से ही कह के जाया करो ।


जो रवायत ज़माने के नाक़िस हुए

छोड़ दो, कुछ नया आज़माया करो ।


दोस्ती भी इबादत से तो कम नही

बेगरज़ साथ तुम भी निभाया करो ।


रहबरी है तुम्हारी कि साज़िश है कुछ

जानते हैं सभी , मत छुपाया करो ।


जो अँधेरों में है उनके दिल में कभी

इल्म की रोशनी तो जगाया करो ।


नाम ’आनन’ का तुमने सुना ही सुना

जानना हो तो घर पे भी आया करो ।


-आनन्द पाठक--


बुधवार, 30 अगस्त 2023

ग़ज़ल 335[10] झूठ की हद से जब गुज़रता है

ग़ज़ल 335[10]

2122---1212---22


झूठ की हद से जब गुज़रता है

बात सच की कहाँ वो करता है


जब दलाइल न काम आती है

गालियों पर वो फिर उतरता है


हर तरफ है धुआँ धुआँ फ़ैला

खिड़कियां खोलने से डरता है


वह उजालों के राज़ क्या जाने

जुल्मतों में सफर जो करता  है


आसमाँ पर उड़ा करे हमदम

वह ज़मीं पर कहाँ ठहरता है ?


निकहत-ए-गुल से कब शनासाई

मौसिम-ए-गुल उसे अखरता है


कैसे ’आनन’ करें यकीं उसपर

जो ज़ुबाँ दे के भी मुकरता है


-आनन्द.पाठक-

शुक्रवार, 25 अगस्त 2023

ग़ज़ल 334 [09]: हो न जाए कही रायगां--

 ग़ज़ल 334 /09


212---212---212---212


हो न जाए कहीं रायगां रोशनी -

उससे पहले तू दिल से मिटा तीरगी


उसने पर्दा उठाया हुई इक सहर

और दिल में जगी एक पाकीज़गी


इक अक़ीदत रही आख़िरी साँस तक

शख़्सियत उसकी थी बस सुनी ही सुनी


ज़िंदगी में तो वैसे कमी कुछ नहीं

जब न तुम ही मिले तो कमी ही कमी


मैं शुरु भी करूँ तो कहाँ से करूँ

मुख़्तसर तो नही है ग़म-ए-ज़िंदगी


इन हवाओं की ख़ुशबू से ज़ाहिर यही

इस चमन से है गुज़री अभी इक परी


एक एहसास है एक विश्वास है

तुमने ’आनन’ की देखी नही आशिक़ी


-आनन्द पाठक-

शब्दार्थ

रायगां  = व्यर्थ

नूर--ए-सहर = सुबह का उजाला

पाकीजगी  = पवित्रता

अक़ीदत = श्रद्धा ,विश्वास

मुख़्तसर = संक्षिप्त

सोमवार, 21 अगस्त 2023

चन्द माहिए : क़िस्त 98/08

 चन्द माहिए : क़िस्त 98/08 

1

रितु बासंती आई

और नशा भरती

गोरी की अँगड़ाई


2

आ मेरे हमजोली

साथ सजाते हैं

आँगन की रंगोली

3

भूली बिसरी यादें

सोने कब देतीं

करती रहतीं बातें


4

कुछ ख़्वाब तुम्हारे थे

और थे कुछ मेरे

सब कितने प्यारे थे


5

जीवन भर चलना है

वक़्त कहाँ रुकता

गिरना है सँभलना है


-आनन्द.पाठक-


रविवार, 20 अगस्त 2023

गीत 79 : मिले पुराने यार हमारे, [ थीम सांग]

 

गीत 79


थीम सांग--[ Jab We Mer -UOR-77]


मिले पुराने यार हमारे, झूमें नाचें गाएँ

वो भी दिन थे क्या मस्ती के, आज वही दुहराएँ

जम कर धूम मचाएँ, याराँ ! जम कर धूम मचाएँ


गंग नहर की लहरों में है अब भी वही जवानी

हम यारों में अब भी बाक़ी मस्ती और जवानी

कभी चाँदनी रात बिताई ’सोलानी’ क तट पर

मिल कर बैठेंगे, बाँटेंगे , यादें और कहानी ।


आसमान भी छोटा होगा उड़ने पर आ जाएँ

जम कर धूम मचाएँ, याराँ ! जम कर धूम मचाएँ


’रुड़की’ से जब निकले हम सब घर-संसार बसाए

बेटा-बेटी पढ़ा लिखा कर ,सच की राह लगाए

अब उनकी अपनी दुनिया है, मेरे संग देवी जी

बाक़ी बची ज़िंदगी अपनी हँसी-खुशी कट जाए


उतर गए जब बोझ हमारे मिल कर खुशी मनाएँ

जम कर धूम मचाएँ, याराँ ! जम कर धूम मचाएँ


सबकी अपनी मंज़िल, सबके नए सफ़र थे

जीवन की आपा-धापी में जाने किधर किधर थे

मुक्त गगन के पंछी अब हम, आसमान अपना है

कल तक हम सबके हिस्से थे , सबके नूर नज़र थे


वक़्त आ गया यारों के संग मिल कर समय बिताएँ

जम कर धूम मचाएँ, याराँ ! जम कर धूम मचाएँ


कभी कभी ऐसा भी होता, मन फ़िसला, सँभला है

कितनी बदल गई है ’रुड़की’, रंग नही बदला है

शान हमारी क्या थी क्या है मत पूछो यह प्यारे

हर इक साथी  ’रुड़की वाला’, नहले पर दहला है


इन हाथों के हुनर हमारे, दुनिया को दिखलाएँ

जम कर धूम मचाएँ, याराँ ! जम कर धूम मचाएँ


-आनन्द पाठक-

गीत 78 : सजनी ! तुम रनिंग कमेन्टरी हो


एक हास्य गीत


सजनी ! तुम रनिंग कमेन्टरी हो दो पल को शान्त न होती हो ।


जब तुम हँसना शुरू कर दो, ’सिद्धू’ पा की हस्ती क्या

जब तुम ’बकना’ शुरु कर दो, छक्का लगने की मस्ती क्या

है कौन जो आऊट हो न सके, स्पीनिंग’ चाल तुम्हारी हो

जब ’किट्टी पार्टी ’ करती हो तो घर क्या है गॄहस्थी क्या ।


मेरे पेन्शन का कैश झपट, मुझे  ’कैच आउट’ कर देती हो ।

सजनी ! तुम रनिंग कमेन्टरी हो ---


तेरे बेलन का एक प्रहार ज्यों धोनी की बल्लेबाजी

मेरा गंजा सर ’बाल’ समझ. कुछ ठोंक गई बेलनबाजी

क्या होगी कही ’क्रिकेट’ जगत में तेरी मेरी जैसी जोड़ी

मेरा दौड़ दौड़ कर ’रन’ लेना, तेरी उचक,उचक ’कलछुल’ बाजी


मैके जाने की धमकी से,मुझे ’क्लीन बोल्ड’ कर देती हो ।

सजनी ! तुम रनिंग कमेन्टरी हो ----


क्या भगवन ऐसे पाप किए जो सास बनी है ’अम्पायर’

जीवन की गाड़ी चली कहाँ ,जब चारो पंचर हो ’टायर’

हम मैच में मैं ’इंजर्ड’ हुआ. हर ’इनिंग’ जीत हुई तेरी

तेरी फ़ील्डिंग’ तेरी ’बैटिंग’ क्यों मार रही ’कट-स्कवायर"


अपने गुस्से का रुप दिखा, घर से बाहर कर देती हो

सजनी ! तुम रनिंग कमेन्टरी हो -----


-आनन्द.पाठक-


शनिवार, 12 अगस्त 2023

गीत 77 :जगह जगह है मारा-मारी,

 

एक गीत 77


जगह जगह है मारा मारी, अब चुनाव की है तैयारी,


चूहे-बिल्ली एक मंच पर

साँप-छछूंदर इक कोटर मे

जब तक चले चुनावी मौसम

भगवन दिखें उन्हें वोटर में ।

नकली आँसू ढुलका कर बस, जता रहें हैं दुनियादारी

जगह जगह है मारा मारी----


मुफ़्त का राशन, मुफ़्त की ”रेवड़ी’

मुफ़्त में बिजली, मुफ़्त में पानी

"कर्ज तुम्हारा हम भर देंगे-"

झूठों की यह अमरित बानी ।

बात निभाने की पूछो तो, कह देते -" अब है लाचारी"

जगह जगह है मारा मारी


नोट-वोट की राजनीति में, 

आदर्शों की बात कहाँ है ?

धुआँ वहीं से उठता दिखता

रथ का पहिया रुका जहाँ है ।

ऊँची ऊँची बातें उनकी, उल्फ़त पर है नफ़रत भारी

जगह जगह है मारा मारी


नया सवेरा लाने निकले

गठबन्धन कर जुगनू सारे

अपने अपने मठाधीश की

लगा रहे है सब जयकारे

इक अनार के सौ बीमार हैं, गठबंधन की है दुश्वारी

जगह जगह है मारा मारी


सूरज का रथ चले रोकने

धमा-चौकड़ी करते तारे

झूठे नारे वादे लेकर --

साथ हो लिए हैं अँधियारे

वही ढाक के तीन पात है, जनता बनी रही दुखियारी

जगह जगह है मारा मारी, अब चुनाव की है तैयारी


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