मंगलवार, 27 अगस्त 2024
मुक्तक 20
सोमवार, 26 अगस्त 2024
ग़ज़ल 421 [70-फ़] : ये हस्ती चन्द रोज़ां की
ग़ज़ल 421[70 फ़]
1222---1222---1222---1222
ये हस्ती चंद रोज़ां की, फ़क़त इतना फ़साना है ।
किसी के पास जाना है तो ख़ुद से दूर जाना है।
उमीदों से भरा है दिल कि आओगे इधर इक दिन
अक़ीदा है अभी क़ायम , क़यामत तक निभाना है ।
तुम्हे एह्सास तो होगा, तड़पता है किसी का दिल
उठा तो अब निक़ाब-ए-रुख, नफ़स का क्या ठिकाना है ।
हवाओं में घुली ख़ुशबू पता उसका बताती है
मुझे मत रोक ऎ ज़ाहिद !मुझे उस ओर जाना है ।
ज़माने की हिदायत को भला माना कहाँ आशिक
नहीं सुनना जिसे कुछ भी, उसे फिर क्या सुनाना है ।
हमारी बुतपरस्ती की शिकायत क्यों तुम्हें, वाइज़ !
तुम्हारी राह चाहे जो, हमारी आशिक़ाना है ।
जुनून-ए-शौक़ है ज़िंदा तभी तक मैं भी हूँ ज़िंदा
सिवा इसके न ’आनन’ को मिला कोई बहाना है ।
-आनन्द.पाठक-
मंगलवार, 20 अगस्त 2024
दोहे 21 : श्रावणी
दोहे 21 : श्रावणी
सोमनाथ के द्वार पर, शरणागत 'आनन्द ।
ना जानू कैसे करूँ, स्तुति वाचन छन्द ।।
शिव जी से क्या माँगना , जाने मेरा हाल ।
बस इतना ही दें प्रभू , मन ना हो वाचाल ॥
भक्ति-भाव में मन रमे, बाबा भोलेनाथ ।
वर इतना बस दीजिए, कभी ना छूटे हाथ ॥
रविवार, 18 अगस्त 2024
अनुभूतियाँ 147/34
उद्यम रत हैं जो दुनिया में
उन्हें भला अवकाश कहाँ है ।
उड़ने पर जब आ जाएँ तो
एक नया आकाश वहाँ है ।
586
नई चेतना, नई प्रेरणा ,
हिम्मत हो, कल्पना नई हो ,
आसमान ख़ुद झुक जाएगा
पंख नया, भावना नई हो ।
587
अनुभूतियाँ 146/33
अनुभूतियाँ 146/33
581
जब अपने मन का ही करना
फिर क्या तुमसे कुछ भी कहना ।
जिसमें भी हो ख़ुशी तुम्हारी
काम वही तुम करती रहना ।
582
अपने अंदर नई चेतना
किरणों का भंडार सजाए ।
व्यर्थ इन्हें क्या ढोते रहना ,
अगर समय पर काम न आए।
583
सूरज डूब गया हो पूरा
ऐसी बात नहीं है साथी ।
उठॊ चलो, प्रस्थान करो तुम
अभी रोशनी है कुछ बाक़ी ।
584
सफ़र हमारा नहीं रुकेगा,
जब तक मन में आस रहेगी ।
जब तक मंज़िल हासिल ना हो
इन अधरों पर प्यास रहेगी ।
-आनन्द. पाठक-
शुक्रवार, 16 अगस्त 2024
दोहा 22 : सामान्य
:1:
ऊँची ऊँची फेंकते , पंडित बने महान ॥
गुरुवार, 15 अगस्त 2024
ग़ज़ल 420 [69 फ़] : मिटा दोगी अगर मेरी मुहब्बत --
ग़ज़ल 420 [ 69 फ़]
1222---1222---1222---122
मिटा दोगी अगर मेरी मुहब्बत की निशानी
हवाओं में रहेगी गूँजती मेरी कहानी ।
कभी तनहाइयों में जब मुझे सोचा करोगी ,
नहीं तुम भूल पाओगी मेरी यादें पुरानी ।
वो दर्या का किनारा,चाँदनी रातों का मंज़र
मुझे सब याद आएँगी, तेरी बातें सुहानी ।
भँवर में डूबती कश्ती किसी की तू ने देखी ,
न भूला हूँ तेरा डरना, न अश्क़-ए- नागहानी ।
अरे! अफ़सोस क्या करना, मुहब्बत की ये कश्ती
किसी की पार लग जानी , किसी की डूब जानी ।
भले मानो न मानो, इश्क़ तुहफा है ख़ुदा का
हसीं आग़ाज़ से अंजाम तक है जिंदगानी ।
मुसाफिर इश्क़ का है वह, न उसको ख़ौफ़ कोई
बलाएँ हो ज़मीनी या बला-ए-आसमानी ।
तुम्हें लगता था ’आनन’ वह तुम्हारी ही रहेगी
ग़रज़ की है यहाँ दुनिया, सभी बातें जबानी ।
-आनन्द.पाठक-
बुधवार, 14 अगस्त 2024
ग़ज़ल 419 [68 फ़] : नहीं वह राज़ से पर्दा उठाता है--
ग़ज़ल 419[ 68 फ़]
1222---1222---1222
नहीं वह राज़ से पर्दा उठाता है ।
हमेशा ग़ैब से दुनिया चलाता है।
अक़ीदा साबित-ओ-सालिम कि झूठा है ?
यही हर मोड़ पर वह आजमाता है ।
नज़र आता नहीं लेकिन कहीं तो है
इशारों में मुझे कोई बुलाता है ।
उतर जाना है कश्ती ले के दरिया में ,
भरोसा है तो फिर क्यों ख़ौफ़ खाना है ।
चिराग़ों को भले तुम क़ैद कर लोगे ,
उजालों को न कोई रोक पाता है ।
हुनर होगा तुम्हारा ख़ास जो कोई
ज़माने में नुमायाँ हो ही जाता है ।
ज़माना जो भी समझे इश्क़ को’ ’आनन’
निभाना पर इसे सबको न आता है ।
-आनन्द.पाठक-
ग़ज़ल 418[67फ़] : जब कहीं तेरी रहगुज़र आई
ग़ज़ल 418[67-फ़]
2122---1212---22
जब कहीं तेरी रहगुज़र आई ।
याद तेरी ही रात भर आई ।
एक लम्हा तुम्हे था क्या देखा
बाद ख़ुद की न कुछ ख़बर आई ।
छोड़ कर जो गई किनारे को
लौट कर फिर न वो लहर आई ।
तुमको देखा तो यूँ लगा ऐसे,
ज़िंदगी जैसे फिर नज़र आई ।
वज़्द में दिल नहीं रहा अपना
उनके आने की जब ख़बर आई।
दर्द अपना कि था ज़माने का
आँख दोनों में मेरी भर आई ।
बात फिर ख़त्म हो गई ’आनन’
बुतपरस्ती पे जब उतर आई ।
-आनन्द पाठक -
मंगलवार, 13 अगस्त 2024
गीत 86[10] : जन्म दिन पर
गीत 86 [10] : जन्म दिन पर--
जन्म दिन पर आज जीवन को नया आयाम दे दो ।
पुष्प बन विहसों कि तुम नवगंध बिखरे
हर बरस मंगलमय़ी व्यक्तित्व निखरे ।
जन्म दिन की शुभ घड़ी, कोई नी पहचान दे दो ।
जन्म-दिन पर आज जीवन को--
आज पावन पर्व पर शुभकामनाएं~
’खुश रहो प्रिय !’ -बस यही है भावनाएँ ।
गीत अनगाए हमारे हो सके स्वरदान दे दो ।
जन्म-दिन पर आज जीवन को--
मधुर स्मृति सौंप कर इक वर्ष बीता
संकल्प आगत औ’ अनागत कौन जीता?
आज यह संक्रान्ति क्षण को इक नया सा नाम दे दो ।
जन्म-दिन पर आज जीवन को--
-आनन्द.पाठक-
शनिवार, 10 अगस्त 2024
ग़ज़ल 417 [21-अ] : तुम्हे लगता है जैसे--
ग़ज़ल 417 [21 अ]
1222---1222---1222---1222
तुम्हें लगता है जैसे यह तुम्हारी ही बड़ाई है
खरीदी भीड़ की ताली, खरीदी यह बधाई है ।
जहाँ कुछ लोग बिक जाते, खनकते चन्द सिक्कों पर
वहाँ सच कटघरे में हैं, जहाँ झूठी गवाही है ।
हमें मालूम है कल क्या अदालत फ़ैसला देगा ,
मिलेगी क़ैद फूलों को, कि पत्थर की रिहाई है ।
खड़ा है दस्तबस्ता, सरनिगूँ दरबार में जो शख़्स
वही देता सदा रहता, बग़ावत की दुहाई है ।
रँगा चेहरा है खुद उसका, मुखौटे पर मुखौटा है,
कमाल-ए-ख़ास यह भी है कि उस पर भी रँगाई है।
भरोसा क्यों नहीं उसको , ज़माने पर , न ख़ुद पर ही
न लोगों से ही वह मिलता , न ख़ुद से आशनाई है ।
फिसलना तो बहुत आसान होता है यहाँ ’आनन’
बहुत मुशकिल हुआ करती ये शुहरत की चढ़ाई है।
-आनन्द पाठक-
गुरुवार, 8 अगस्त 2024
ग़ज़ल 416[32 अ] : रखें इलजाम हम किस पर
ग़ज़ल 416 [ 32 अ ]
1222---1222---1222---1222
रखें इलजाम हम किस पर, वतन की इस तबाही का ।
सभी तो तर्क देते है, यहाँ अपनी सफ़ाई का ।
लगा है हाथ जिसके खूँ, छुपा कर है रखा ख़ंज़र
किया दावा हमेशा ही वो अपनी बेगुनाही का ।
मिला कर हाथ दुश्मन से, वो ग़ैरों से रहा मिलता
सरे महफ़िल किया चर्चा ,वो मेरी बेवफ़ाई का ।
क़दम दो-चार- दस भी रख सका ना घर से जो बाहर
वही समझा गया क़ाबिल हमारी रहनुमाई का ।
पला करता है गमलों में , घरौदों के जो साए में
उसे लगता हमेशा क्यों, वो मालिक है ख़ुदाई का।
बदल देता हो जो अपनी गवाही चन्द सिक्कों पर
भला कोई करे कैसे यकीं उसकी गवाही का ।
ज़माने की मसाइल पर नहीं वह बोलता ’आनन’
लगा अपना सुनाने ही वो किस्सा ख़ुदसिताई का ।
-आनन्द पाठक-
मंगलवार, 6 अगस्त 2024
ग़ज़ल 415 [63 A] : हमेशा क्यों किया करते हो बस --
ग़ज़ल 415 [63 A]
1222---1222---1222---1222
हमेशा क्यों किया करते हो बस तलवार की बातें
कभी तो कर लिया करते दिल-ए-दिलदार की बातें ।
जो सरहद की लकीरें हैं न दिल पर खीचिएँ उनको
सभी मिट जाएँगी करते रहें कुछ प्यार की बातें ।
उठा कर देखिए तारीख़ पिछले इन्क़लाबों की ,
सड़क पर आ गई जनता, हवा दरबार की बातें ।
लगा कर आग नफ़रत की जला दोगे अगर गुलशन
करेगा कौन फिर बोलॊ गुल-ओ-गुलजार की बातें ।
अगर करनी बहस है तो करो मुफ़लिस की रोटी पर
न टी0वी0 पर करो बस बैठ कर बेकार की बातें ।
यहीं जीना, यहीं मरना, यहीं रहना है हम सबको ,
करे फिर किसलिए हम सब अबस तकरार की बातें।
बहुत अब हो चुकी ’आनन’ मंदिर और मसज़िद की
सुनो अब तो ग़रीबों की , सुनो लाचार की बातें ।
-आनन्द.पाठक-
सोमवार, 5 अगस्त 2024
ग़ज़ल 414 [66 फ़] : इश्क़ करना बुरा नहीं होता
414 [66 फ़]
2122---1212---22-
इश्क़ करना बुरा नहीं होता ,
हर बशर बावफ़ा नहीं होता ।
हुस्न कब आ के दिल चुरा लेगा
दिल को भी ये पता नहीं होता ।
आप के दर तलक कईं राहें
एक ही रास्ता नहीं होता ।
बात मैं क्या सुनूँ तेरी ज़ाहिद ,
दिल ही जब आशना नहीं होता ।
प्यास कोई अगर नहीं होती
आदमी फिर चला नहीं होता ।
दिल अगर खोल कर जो हम रखते
लौट कर वो गया नहीं होता ।
दरहक़ीक़त यह बात है ’आनन’
इश्क़ का मरहला नहीं होता ।
-आनन्द.पाठक-
ग़ज़ल 413 [ 65-फ़] : हर ज़ुबाँ पर है बस यही चर्चा
ग़ज़ल 413 [ 65-फ़]
2122---1212---22
हर ज़ुबाँ पर है बस यही चर्चा ,
राज़ हो फ़ाश जब उठे परदा ।
इतनी ताक़त कहाँ थी आँखों में
देखता मैं जो आप का जल्वा ।
लोग पूछा किए अजल से ही
आप से कौन सा है ये रिश्ता ।
दिल में आकर लगे समाने वो
दिल ये होने लगा है बेपरवा ।
मर गई जब से है अना अपनी
अब न कोई रहा गिला शिकवा ।
मिल गया जा के जब समंदर में
फिर वो दर्या कहाँ रहा दर्या ।
उस तरफ़ क्यों न तुम गए ’आनन’
जिस तरफ़ बाग़रज़ खड़ी दुनिया ।
-आनन्द.पाठक-
बाग़रज़ = स्वार्थ से
शनिवार, 3 अगस्त 2024
ग़ज़ल 412 [64-फ़] : जिसको चाहा कहाँ उसे पाया
ग़ज़ल 412 [64-फ़ ]
2122---1212---22
जिसको चाहा, कहाँ उसे पाया ।
वो गया लौट कर नहीं आया ॥
ज़िंदगी बोल कर गई जब से ,
फिर ये दुनिया लगी मुझे माया ।
ग़ैब से ही करे इशारे. वो ,
सामने कब भला नज़र आया ।
एक ही है जो मेरा अपना है
और कोई मुझे नहीं भाया ।
शेख़ साहब न रोकिए मुझको
आज महबूब मेरे घर आया ।
रंज़-ओ-ग़म, चन्द अश्क़ के क़तरे
इश्क़ का बस यही है सरमाया ।
कैसे कह दूँ मैं इश्क़ में ’आनन’
कौन तड़पा है कौन तड़पाया ।
-आनन्द.पाठक-
ग़ज़ल 411[ 63-फ़] : मेरी यादों में आ रहा कोई
ग़ज़ल 411 [63-फ़ ]
2122---1212---22
मेरी यादों में आ रहा कोई
जैसे मुझको बुला रहा कोई।
या ख़ुदा दिल की ख़ैरियत माँगू
रुख़ ए पर्दा उठा रहा कोई ।
वह ज़ुबाँ से तो कुछ नहीं कहता
पर निगाहे झुका रहा कोई ।
सामने देख कर नज़र आता ,
हाल दिल का छुपा रहा कोई ।
गीत वैसे तो गा रहा मेरा ,
दर्द अपना सुना रहा कोई ।
अब तो बातों में रह गई बातें
अब न वादा निभा रहा कोई।
बात कुछ भी तो थी नहीं ’आनन’
ताड़, तिल का बना रहा कोई ।
-आनन्द.पाठक-
शुक्रवार, 2 अगस्त 2024
ग़ज़ल 410 [64 A] : खुलने दो खिड़कियों को ,--
ग़ज़ल 410 [64 A]
221---2122---// 221---2122
खुलने दो खिड़कियों को , ताजी हवा तो आए
बहका हुआ है गुलशन, कुछ गीत तो सुनाए ।
माना कि पर कटे हैं , दिल में तो हौसले हैं .
कह दो ये आसमाँ से, मुझको न आजमाए ।
हर शाम राह देखी , रख्खे दिए जला कर ,
अब याद भी नहीं है, कितने दिए जलाए ।
दीदार का सफ़र तो ,इतना नहीं है आसाँ
दीवानगी ने मुझकॊ, क्या क्या न दिन दिखाए ।
चेहरे तमाम चेहरे , सब एक-सा दिखे है ।
किसको सही कहे दिल. किसको ग़लत बताए।
महफ़िल सज़ा करेगी , कुछ लोग जब न होंगे ,
उनको भी याद करना , जो लौट कर न आए ।
शायद समझ वो जाए, तारीफ़-ए-इश्क़ क्या है,
जब प्यार में हम ’आनन’, ख़ुद को मिटा के आए ।
-आनन्द.पाठक-
चन्द माहिए 105/15
चन्द माहिए 105/15 [ उस पार]
:1:
कलियाँ हैं जन्नत की
ख़ूशबू आती है
माली के मिहनत की ।
:2:
गुरुवार, 1 अगस्त 2024
ग़ज़ल 409 [ 33 A] : लोग चले हैं प्यास बुझाने --
ग़ज़ल 409 [ 33 A]
21-121-121-122//21-121-121-121-122
लोग चले है प्यास बुझाने, बिन पानी तालाब जिधर है ,
ढूँढ रहे हैं साया मानो , जिस जानिब ना एक शजर है।
दीप जलाने वाले कम हैं , शोर मचाने वाले सरकश,
रहबर ही रहजन बन बैठा, सहमी सहमी आज डगर है।
आदर्शों की बाद मुसाफिर रख लें सब अपनी झोली में
कौन सुनेगा बात तुम्हारी, सोया जब हर एक बशर है ।
कितने दिन तक रह पाओगे. शीशे की दीवारों में तुम
आज नहीं तो कल तोड़ेंगे, सबके हाथों में पत्थर है ।
दरवाजे सब बंद किए हैं, बैठे हैं कमरे के भीतर
क्या खोले हम खिड़की, साहिब !बाहर ख़ौफ़ भरा मंज़र है ।
सीने में बारूद भरा है, हाथों में माचिस की डिब्बी
निकलूँ भी तो कैसे निकलूँ, सबके हाथों में ख़ंज़र है ।
सूरज की किरणों को ’आनन’ लाने को जो लोग गए थे,
अँधियारे लेकर लौटे हैं, घोटालों में क़ैद सहर है ।
-आनन्द.पाठक-