मंगलवार, 27 अगस्त 2024

मुक्तक 20

1
221  1221   1221   122
शोलों को हवा देने की साजिश जो रचोगे
भड़केगी अगर आग तो क्या तुम न जलोगे ?
गोली न ये बंदूक, न तलवार , न चाकू
मर जाएगा 'आनन' जो मुहब्बत से मिलोगे

2
122   122   122   122
वो अपना नहीं था जिसे अपना जाना
मगर शर्त उसकी थी मुझको निभाना
बदन खाक की खाक मे ही मिलेगी
तो फिर किसलिए इस पे आँसू बहाना

3
122   122   122   122
जो करता है जैसा वो भरता यहीं है
यहाँ मौत से कौन डरता नहीं है 
मुकर्रर है जो दिन तो जाना ही होगा
कोई बाद उसके ठहरता  नहीं है ।

4
122   122    122    122
बहुत दे चुके तुम होअपनी सफाई
बहुत कर चुके तुम हो बातें हवाई
ये जुमले तो सुनने मे लगते हैं अच्छे
मगर इनसे रोटी न मिलती है भाई

-आनन्द पाठक-

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