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शोलों को हवा देने की साजिश जो रचोगे
भड़केगी अगर आग तो क्या तुम न जलोगे ?
गोली न ये बंदूक, न तलवार , न चाकू
मर जाएगा 'आनन' जो मुहब्बत से मिलोगे
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वो अपना नहीं था जिसे अपना जाना
मगर शर्त उसकी थी मुझको निभाना
बदन खाक की खाक मे ही मिलेगी
तो फिर किसलिए इस पे आँसू बहाना
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जो करता है जैसा वो भरता यहीं है
यहाँ मौत से कौन डरता नहीं है
मुकर्रर है जो दिन तो जाना ही होगा
कोई बाद उसके ठहरता नहीं है ।
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बहुत दे चुके तुम होअपनी सफाई
बहुत कर चुके तुम हो बातें हवाई
ये जुमले तो सुनने मे लगते हैं अच्छे
मगर इनसे रोटी न मिलती है भाई
-आनन्द पाठक-
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