गीत 087 [ अभी संभावना है]
वह नई रोशनी की फिर से बातें करते हैं
मैं एक अँधेरा तब से अब तक भोग रहा हूँ ।
गलियों गलियों नुक्कड़ नुक्कड़ चौराहों पर
’सम्पूर्ण क्रान्ति" का नारा हमसे लगवाएँगे ।
पुन: सुनहले स्वप्न दिखा सूनी आँखों में
सिंहासन सत्ता का हमसे हिलवाएँगे ।
तार तार हो गई मेरी विश्वास चदरिया
मैं पेबन्द पेबन्द तब से अब तक जोड़ रहा हूँ।
हम आज तलक है खड़े उन्हीं चौराहों पर
कल हमे अकेला छोड़ कि "दिल्ली’ चले गए ।
सब सत्ता के बँटवारे में आसक्त रहे
कितने वर्षों हम उनके हाथों छले गए ।
वह आश्वासन का बोझ सौंप आश्वस्त हुए
मैं टुकड़ा-टुकड़ा अब तक जीवन जोड़ रहा हूँ ।
हर कोई एक मशाल लिए अपने हाथों में
" जे0पी0 बनने का दम्भ लिए फिरता रहता है।
हर रथी यहाँ अब स्वयं सारथी बन बैठा
हर नेता खुद को महारथी सोचा करता ।
वह शहर शहर में अश्वमेध की बातें करता
मैं बलिवेदी की तब से अब तक सोच रहा हूँ।
-आनन्द.पाठक-
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