सोमवार, 16 सितंबर 2024

अनुभूतियाँ 150/37

 

क़िस्त 150/37

 

597

बहुत दिनों के बाद मिली हो

आओबैठॊ पास हमारे -

यह मत पूछो कैसे काटे

विरहा में, दिन के अँधियारे ।

 

598

मन के अन्दर ज्योति प्रेम की

राह दिखाती रही उम्र भर

जिसे छुपाए रख्खा मैने

पीड़ा गाती रही उम्र भर

 

599

साथ तुम्हारा ही संबल था

जिससे मिला सहारा  मुझको

साँस साँस में तुम ना घुलती

मिलता कहाँ किनारा मुझको

 

600

सदियों की तारीख़ भला मै

लम्हों में बतलाऊं कैसे ?

जीवन भर की राम-कहानी

पल दो पल में गाऊँ कैसे ?


-आनन्द.पाठक-

 

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