क़िस्त 150/37
597
आसमान के कितने ग़म है
धरती के भी क्या कुछ कम हैं?
कौन देखता इक दूजे की
आँखे किसकी कितनी नम हैं ।
598
काट दिए जब दिन विरहा के
मत पूछो कैसे काटे हम
सारी ख़ुशियाँ एक तरफ़ थी
जीवन टुकड़ों में बाँटे हम
599
साथ तुम्हारा ही संबल था
जिससे मिला सहारा मुझको
साँस साँस में तुम ना घुलती
मिलता कहाँ किनारा मुझको
600
सदियों की तारीख़ भला मै
लम्हों में बतलाऊं कैसे ?
जीवन भर की राम-कहानी
पल दो पल में गाऊँ कैसे ?
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