मंगलवार, 3 सितंबर 2024

गीत 087 : इससे पहले कि हम रोशनी से जलें--

  गीत 087: गीत 14 [ अभी संभावना है ]


इससे पहले कि हम  रोशनी से जलें,’आदमी’ तो जगा आदमी में ।


आदमी से अजनबी हुआ आदमी

रंग के भेद में रंग गया आदमी ।

काल गोरे हो तन पर लहू एक रंग

जात और पात में बँट गया आदमी ।

इससे पहले कि हम धर्म अधूरा पढ़ें,"ढाई आख़र" पढ़े आख़िरी में ।


आदमी है खड़ा लेकर ’परमाणु-बम्ब’

आदमी बन गया साँप का तन-बदन ।

हर ज़हर से ज़हरीला हुआ आदमी 

आदमी बन गया एक सीलन घुटन ।

इससे पहले कहीं हम-नस्ल ना बचे, ’गाँधी-गौतम’ बचा आदमी ।


आदमी को निगलता हुआ आदमी

आदमी से उबलता हुआ आदमी ।

आदमी आदमी से परेशान है -

अग्नि-शलाका उगलता हुआ आदमी ।

इससे पहले कि हम पर अँधेरा हँसे, रोशनी तो जगा आदमी में ।


’गाँधी’ वह जो मिटे आदमी के लिए

’सुकरात’ वह जो ज़हर के प्याले पिए

आदमी ने ही सूली चढ़ाया उसे -

आदमी जो जिया आदमी के लिए ।

इससे पहले कि फिर कोई सूली चढ़े, एक "ईशा" जगा आदमी में ।

इससे पहले कि हम  रोशनी से जलें,’आदमी’ तो जगा आदमी में ।


-आनन्द.पाठक-





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