कविता 31 : जब सच कर उठ कर
सच जब उठ कर ---
सत्य ढूँढना, माना मुश्किल
झूठ फूस की ढेरी में
धुआँ धुआँ फैला देते हो
सच है तो फिर सच उठ्ठेगा
भले उठे वह देरी से ।
झूठ मूठ के पायों पर
खड़ा तुम्हारा सिंहासन
आज नहीं तो कल डोलेगा
सच उठ कर जब सच बोलेगा ।
-आनन्द पाठक-
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