मंगलवार, 10 सितंबर 2024

कविता 29 : जब सच उठ कर

  कविता 29 : जब सच  उठ कर


सच जब उठ कर ---

 सत्य ढूँढना, माना मुश्किल
झूठ फूस की ढेरी में
धुआँ धुआँ फैला देते हो
सच है तो फिर सच उठ्ठेगा
भले उठे वह देरी से ।

  झूठ मूठ के पायों पर
खड़ा तुम्हारा सिंहासन
आज नहीं तो कल डोलेगा
सच  उठ कर जब सच बोलेगा ।

-आनन्द पाठक-

इस कविता को आप मेरे यू-ट्यूब चैनेल -आवाज़ का सफ़र- पर सुन सकते है


कोई टिप्पणी नहीं: