मंगलवार, 10 सितंबर 2024

कविता 31 : जब सच उठ कर

  कविता 31 : जब सच कर उठ कर


सच जब उठ कर ---

 सत्य ढूँढना, माना मुश्किल
झूठ फूस की ढेरी में
धुआँ धुआँ फैला देते हो
सच है तो फिर सच उठ्ठेगा
भले उठे वह देरी से ।

  झूठ मूठ के पायों पर
खड़ा तुम्हारा सिंहासन
आज नहीं तो कल डोलेगा
सच  उठ कर जब सच बोलेगा ।

-आनन्द पाठक-

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