[ नोट – मेरी किताब –मौसम
बदलेगा – [ गीत ग़ज़ल संग्रह] की एक संक्षिप्त
समीक्षा, आदरणीय राम अवध विश्वकर्मा जी ने की है जो मैं इस पटल पर लगा रहा हूं।ग्वालियर
निवासी श्री विश्वकर्मा जॊ सरकारी सेवा से निवृत्त हो, फ़ेसबुक और Whatsapp के मंचीय शोरगुल से दूर,अलग एकान्त साहित्य सृजन में
साधनारत हैं।
आप स्वयं एक समर्थ ग़ज़लकार
है एव ग़ज़ल के एक सशक्त हस्ताक्षर भी ।आप की अबतक 7- पुस्तके प्रकाशित हो चुकी है
जिसमे आप का नवीनतम ग़ज़ल संग्रह “तंग आ गया सूरज” का हाल ही में प्रकाशित हुआ है।आप
की रचनाओं पर एम0फिल0 पी0 एच0 डि0 के कुछ शोधार्थियों द्वारा भी काम किया जा रहा
है।] विश्वकर्मा जी का बहुत बहुत धन्यवाद—सादर]
समीक्षा पर आप भी अपने विचार प्रगट कर सकते है
मौसम बदलेगा—एक समीक्षा
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"मौसम बदलेगा" श्री आनन्द
पाठक जी की गीत, ग़ज़ल ,मुक्तक से सुसज्जित अभी हाल में प्रकाशित हुई पुस्तक है। यह उनकी दसवीं पुस्तक
है। इससे पहले चार व्यंग्य संग्रह, चार गीत ग़ज़ल संग्रह और एक
माहिया संग्रह की किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। अनेक विधाओं में अपनी लेखनी का हुनर
दिखाने वाले आनन्द पाठक जी को गीत, ग़ज़ल ,माहिया आदि पर न केवल अच्छी पकड़ है वरन उनके व्याकरण का भी गहराई से ज्ञान
है।
एक बार मैं नेट पर ग़ज़ल ज़िहाफ़ के बारे में सर्च कर रहा था तो मुझे उनका
ब्लॉग www.aroozobaharblogspot.com
दिखाई दिया। उसमें लगभग 87 ब्लॉग हैं।उस पूरे ब्लॉग को पढ़ने के बाद ऐसा
लगा कि ग़ज़ल के अरूज़ के लिये अन्यत्र कहीं भटकने की ज़रुरत नहीं है। बड़े सरल एवं विस्तार
से बारीकी के साथ अरूज़ के हर पहलू पर इसमें चर्चा की गई है। यहीं से मेरा परिचय पाठक
जी से हुआ। उनकी सरलता सहजता ने इस कदर मुझे प्रभावित किया कि उनके लेखन के साथ साथ
उनका भी मुरीद हो गया।
' मौसम बदलेगा ' शीर्षक उनके एक गीत से
लिया गया है। जिसके बोल हैं '
सुख का मौसम, दुख का मौसम, आँधी पानी का हो मौसम,
मौसम का आना जाना है , मौसम है मौसम बदलेगा।
यह गीत आशा का गीत है। पुस्तक में
99 ग़ज़लें, 08 नई कविता ( छन्द मुक्त ), 05 मुक्तक और 09 गीत हैं।
होली की ग़ज़ल नज़ीर अकबराबादी की याद दिला देती है। होली पर शेर
देखें-
करें जो गोपियों की चूड़ियाँ झंकार
होली में
बिरज में खूब देती है मज़ा लठमार
होली में
अबीरों के उड़े बादल कहीं है फाग
की मस्ती
कहीं गोरी रचाती सोलहो श्रृंगार
होली में
मुफलिस की ज़िन्दगी में अक्सर अँधेरा
ही रहता है। सूरज उगता तो हर दिन है लेकिन
उसके घर तक रोशनी नहीं पहुँचती। यह शेर उनकी व्यथा को बखूबी बयान करता है।
जीवन के सफ़र में हाँ ऐसा भी हुआ
अक्सर
ज़ुल्मत न उधर बीती सूरज न इधर आया
देश के नेता सत्ता के लिए दीन धरम
ईमान सब कुछ त्याग देते हैं । उनके लिये ये सब निरर्थक हैं। कुर्सी के लिये लालायित
ऐसे नेताओं पर उनका एक शेर देखें
'जब दल बदल ही करना तब दीन क्या
धरम क्या
हासिल हुई हो कुरसी ईमान जब लुटाकर'
इस दुनिया में राजा रानी पंडित मुल्ला
आदि का भले ही लोग लेबल लगाकर भेद भाव के साथ जी रहे हों लेकिन मौत की नज़र में न कोई
छोटा है न बड़ा। इसी से संदर्भित एक शेर देखें
' न पंडित न मुल्ला न राजा न रानी
रहे मर्ग में ना किसी को रियायत'
इतिहास गवाह है जनता जब शासन तंत्र
से ऊब जाती है तब वह परिवर्तन पर आमादा हो जाती है और वह भ्रष्ट तंत्र को जड़ से.उखाड़
फेंकती है। शायर ने इस कटु सत्य को अपने इस शेर के माध्यम से रखने की कोशिश की है-
'मुट्ठियाँ इन्किलाबी भिचीं जब
कभी
ताज सबके मिले ख़ाक में क्या नहीं'
न्याय व्यवस्था पर एक करारा व्यंग्य
देखें
'क़ातिल के हक़ में लोग रिहाई में
आ गये
अंधे भी चश्मदीद गवाही में आ गये'
आज की लीडरशिप पर शायर सवाल उठाते
हुये शायर
कहता है—
' ऐ राहबर ! क्या ख़ाक तेरी रहबरी
यही
हम रोशनी में थे कि सियाही मे आ
गये'
इस देश की सियासत ने अपनी तहज़ीब
को गालियों के हाथ गिरवी रख दी है। दिन ब दिन उसके गिरते स्तर से दुखी होकर शायर कहता
है-
' अब सियासत में बस गालियाँ रह
गईं
ऐसी तहज़ीब को आजमाना भी क्या'
'चोर भी सर उठाकर हैं चलने लगे
उनको कानून का ताजियाना भी क्या
उनके कुछ मुक्तक देखिये जो आजकल के हालात को बखूबी बयान करते हैं
यह चमन है हमारा तुम्हारा भी है
खून देकर सभी ने सँवारा भी है
कौन है जो हवा में जहर घोलता
कौन है वो जो दुश्मन को प्यारा भी
है
मौसम बदलेगा एक नायब क़िताब है। इसकी
ग़ज़ले, गीत,मुक्तक आदि पाठक को
अंत तक पढ़ने पर मजबूर करते हैं। कहीं भी उबाऊपन महसूस नहीं होता ।
पुस्तक का नाम - मौसम बदलेगा
प्रकाशक - अयन प्रकाशन, उत्तम नगर, नई दिल्ली
मूल्य- रुपये 380/-
समीक्षक- राम अवध विश्वकर्मा ग्वालियर
(म. प्र.)
सम्पर्क 94793 28400