फिर भी इक जिन्दा रहा बिना हाथ मे हाथ ।
अपनी बाहों सदा 'आनन' रख विश्वास ।
[ इन दोहों में सुधार अपेक्षित है--कॄपया प्रतीक्षा करें ---]
दोहे 16
[ इन दोहों में सुधार अपेक्षित है--कॄपया प्रतीक्षा करें ---]
दोहे 14
अनुभूतियाँ 139 /26
:1:
" जब तक अन्तिम साँस रहेगी
सदा चलूँगी छाया बन कर "
मुँहदेखी थी या वह सच था
सोचा करता हूँ मैं अकसर ।
2
इधर खड़े या उधर खड़े हो
किधर खडे हो साफ बताओ
हवा जिधर की जैसी देखी
पीठ उधर ही मत कर जाओ
3
आवा ही जब नही तुम्हे था
फिर क्यो झूटी कसमें खाई?
सुनना ही जब नहीं तुम्हें कुछ
क्या कहती मेरी तनहाई
4
हार जीत की बात न होती
इश्क़ इबादत. प्रेम समर्पण ।
कैसे साफ़ नज़र छवि आए
मन का हो जब धुँधला दर्पण ।
-आनन्द.पाठक-
अनुभूतियां~136/23 : रामलला पर [ भाग-2] [ भाग -1 देखें 131/18 ]
:1:
मंदिर का हर पत्थर पावन
प्रांगण का हर रज कण चंदन
हाथ जोड़ कर शीश झुका कर
राम लला का है अभिनंदन
:2:
हो जाए जब सोच तुम्हारी
राग द्वेष मद मोह से मैली
राम कथा में सब पाओगे
जीवन के जीने की शैली ।
:3:
एक बार प्रभु ऐसा कर दो
अन्तर्मन में ज्योति जगा दो
काम क्रोध मद मोह तमिस्रा
मन की माया दूर भगा दो ।
:4:
श्याम वर्ण मृदु हास अधर पर
अनुपम छवि पर हूँ बलिहारी
कृपा करो हे राम सियापति
आया हूँ प्रभु ! शरण तिहारी
-आनन्द पाठक-
अनुभूतियाँ 134/21
:1:
मन का क्या है उड़ता रहता
एक जगह पर कब ठहरा है
लाख लगाऊँ बंदिश इस पर
पगला कब मेरी सुनता है ।
;2:
पूजन अर्चन में जब बैठूँ
इधर उधर मन भागे फिरता
रिचा मंत्र बस है जिह्वा पर
जाने कहाँ कहाँ मन रमता
:3:
उचटे मन की दवा न कोई
उजडी उजडी दुनिया लगती
खुशियाँ जैसे हुई पराई
आँखों मे बस पीड़ा बसती
:4:
एक दिखावा सा लगता है
हाल पूछना -"जी कैसे हो?
बिना सुने उत्तर चल देना
अर्थहीन लगता जैसे हो ।
क्षणिकाएँ 07
जब बचपन मेसमय कहाँ रुकता जीवन मेंव
ही तितलियाँ बैठ गईं अब
अपने अपने फूलों पर
पास से गुज़रूँ, पूछे हँस कर
"अब घुटनों का दर्द तुम्हारा, कैसा कविवर" ?
क्षणिकाएं 06
सूरज निकले उससे पहले
या डूबे तो बाद में उसके
रोज़ हज़ारों क़दम निकलते
कुआँ खोदते पानी पीते
तिल तिल कर हैं मरते ,जीते
सबकी अपनी अलग व्यथा है
महानगर की यही कथा है ।
-आनन्द.पाठक-