अनुभूतियाँ 138/25
:1:
लाने को थे नई निज़ामत
सीधे जा पहुँचे तिहाड़ मे
बैठ करेंगे वहीं सियासत
:2:
लिए हाथ में काठ की हांडी
कितनी बार चढ़ाओगे तुम
इसकी टोपी उसके सर पर
कबतक रखते जाओगे तुम ?
:3:
झूठ बोलने की सीमा क्या
क्या उसको मालूम नहीं है
जितना भोला चेहरा दिखता
उतना वह मासूम नहीं है ।
:4:
कभी आप को देख रहा हूँ
कभी देखता हूँ अपने को
क्या न उमीदें रखीं आप से
जोड़ रहा टूटे सपने को ।
- आनन्द पाठक-
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