अनुभूतियां~136/23 :
541
मंदिर का हर पत्थर पावन
प्रांगण का हर रज कण चंदन
हाथ जोड़ कर शीश झुका कर
राम लला का है अभिनंदन
542
हो जाए जब सोच तुम्हारी
राग द्वेष मद मोह से मैली
राम कथा में सब पाओगे
जीवन के जीने की शैली ।
543
एक बार प्रभु ऐसा कर दो
अन्तर्मन में ज्योति जगा दो
काम क्रोध मद मोह तमिस्रा
मन की माया दूर भगा दो ।
544
श्याम वर्ण मृदु हास अधर पर
अनुपम छवि पर हूँ बलिहारी
कृपा करो हे राम सियापति
आया हूँ प्रभु ! शरण तिहारी
-आनन्द पाठक-
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