अनुभूतियाँ 137/24
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रहने दो ये मीठी बातें
झूठ दिखावा झूठे वादे
क्या मै समझ नहीं सकता हूँ
क्या घातें , क्या नेक इरादे
546
हाल यही जो अगर रहा तो
छूटेंगे सब संगी साथी ।
तुम्ही अकेले करती रहना
सुबह-शाम की दीया-बाती ।
547
परछाई तो परछाई है
देख सकूँ पर हाथ न आए
एक भरम है जग मिथ्या है
मगर समझ में बात न आए ।
548
मन उचटा उचटा रहता है
जाने क्यों ? -यह समझ न पाऊँ
जिसकी सुधियों में खोया हूँ
कैसे मैं उसको बतलाऊँ
-आनन्द.पाठक-
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