मंगलवार, 9 अप्रैल 2024

अनुभूतियाँ 139/26

 अनुभूतियाँ  139 /26


:1:

" जब तक अन्तिम साँस रहेगी

सदा चलूँगी छाया बन कर "

मुँहदेखी थी या वह सच था

सोचा करता हूँ  मैं अकसर ।

2

इधर खड़े या उधर खड़े हो
किधर खडे हो साफ बताओ
हवा जिधर की जैसी देखी
पीठ उधर ही मत कर जाओ

3
आवा ही जब नही तुम्हे था
फिर क्यो झूटी कसमें खाई?
सुनना ही जब नहीं तुम्हें कुछ
क्या कहती मेरी तनहाई 

4

हार जीत की बात न होती

इश्क़ इबादत. प्रेम समर्पण ।

कैसे साफ़ नज़र छवि आए

मन का हो जब धुँधला दर्पण ।


-आनन्द.पाठक-


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