अनुभूतियाँ 139 /26
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" जब तक अन्तिम साँस रहेगी
सदा चलूँगी छाया बन कर "
मुँहदेखी थी या वह सच था
सोचा करता हूँ मैं अकसर ।
2
इधर खड़े या उधर खड़े हो
किधर खडे हो साफ बताओ
हवा जिधर की जैसी देखी
पीठ उधर ही मत कर जाओ
3
आवा ही जब नही तुम्हे था
फिर क्यो झूटी कसमें खाई?
सुनना ही जब नहीं तुम्हें कुछ
क्या कहती मेरी तनहाई
4
हार जीत की बात न होती
इश्क़ इबादत. प्रेम समर्पण ।
कैसे साफ़ नज़र छवि आए
मन का हो जब धुँधला दर्पण ।
-आनन्द.पाठक-
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