शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

अनुभूतियाँ 134/21

 अनुभूतियाँ 134/21


533

मन का क्या है उड़ता रहता

एक जगह पर कब ठहरा है

लाख लगाऊँ बंदिश इस पर

पगला कब मेरी सुनता  है ।

534

पूजन अर्चन पर जब बैठूँ

इधर उधर मन भागे फिरता

रिचा मंत्र बस है जिह्वा पर

जाने कहाँ कहाँ मन रमता 

535

उचटे मन की दवा न कोई

उजडी उजडी दुनिया लगती

खुशियाँ जैसे हुई पराई

आँखों मे बस पीड़ा  बसती

536

एक दिखावा सा लगता है

हाल पूछना -"जी कैसे हो?

बिना सुने उत्तर चल देना

अर्थहीन लगता जैसे हो ।

-आनन्द.पाठक-

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