शनिवार, 6 अप्रैल 2024

अनुभूतियाँ 135/22

अनुभूतिया 135/22

537
एक भरोसा टूट गया जो
बाक़ी क्या फिर रह जाएगा
आँखों में जो ख़्वाब सजे है
पल भर में सब बह जाएगा

538
जाने की तुम सोच रही हो
जाओ ,कोई बात नहीं फिर
कभी लौट कर आने का  हो
खड़ा मिलूँगा तुम्हें यहीं फिर 

539
बिला सबब जब करम तुम्हारा
होता है, दिल घबराता है
मीठी मीठी बातें सुन सुन
जाने क्यों दिल डर जाता है

 540
शब्दों के आडंबर से कब
सत्य छुपा करता है जग में ।
बहुत दूर तक झूठ न चलता
गिर जाता है पग दो पग में ।

-आनन्द.पाठक-

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