1
सुकून-ओ-चैन ज़ेर-ए-हुक्म उनके आने जाने पे
वो आतें हैं तो आता है ,
नहीं आते , नहीं आता
2
वो चिराग़
लेके चला तो है ,मगर
आँधियों का ख़ौफ़ भी
मैं
सलामती की दुआ करूँ ,उसे
हासिल-ए-महताब हो
3
1 222---1222----1222-----1222
1 222---1222----1222-----1222
ज़माने की
हज़ारों बन्दिशें क्यों फ़र्ज़ हो मुझ पर
अकेला मैं
ही क्या ’आनन’ जो राह-ए-इश्क़ चलता हूँ ?
4
अब यह शे’र एक ग़ज़ल के रूप में ढल गया है
5
हुस्न-ओ-जमाल
यूँ तो इनायत ख़ुदा की है
उस हुस्न
में दिखे है ख़ुदा का ज़ुहूर भी
6
अजब क्या
चीज़ है ये नीद जो आंखों में बसती है
जब आनी है
तो आती है , नहीं आनी ,नही आती
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7
जहाँ जहाँ
पे पड़े थे तेरे क़दम ,जानम
वहीं वहीं
पे झुकाते गए थे सर अपने
8
खुद का
चेहरा ख़ुद नज़र आता नहीं
जब तलक न आइना हो सामने
9
बचाता दिल
को तो कैसे बचाता मैं ,’आनन’
बला की
धार थी उसकी निगाह-ए-क़ातिल में
10
यूँ जितना भी चाहो दबे पाँव आओ
हवाओं की
ख़ुशबू से पहचान लूँगा
11
तुम्हारा रास्ता तुमको मुबारक हज़रत-ए-नासेह
अरे ! मैं रिन्द हूँ , पीर-ए-मुगां है ढूँढता मुझको
अगर मेरे
दिल से निकल कर दिखा दो
तो फिर हार अपनी चलो मान लूँगा
12
जो मिले मुझ से चेहरे चढ़ाए थे ,वो
कोई मिलता नहीं मुझसे मेरी तरह
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13
राह-ए-उलफ़त तो नही आसान है
दिल को तू
पहले अभी शैदा तो कर
सिर्फ़ सजदे में पड़ा है बेसबब
इश्तियाक़-ए-इश्क़
भी पैदा तो कर
14
कुछ करो या ना करो इतना करो
है बची ग़ैरत अगर ज़िन्दा करो
कुछ करो या ना करो इतना करो
है बची ग़ैरत अगर ज़िन्दा करो
कौन देता
है किसी को रास्ता
ख़ुद नया
इक रास्ता पैदा करो
15
चाह अपनी कभी छुपा न सके
दाग़-ए-दिल भी उसे दिखा न सके
यार की आँख नम न हो-’आनन’
बात दिल की ज़ुबाँ पर ला न सके
16
मिला कर खाक में मुझ को ,भला अब पूछते हो क्या
हुनर कैसा तुम्हारा और क्या तक़दीर थी मेरी
भरे थे रंग कितने ज़िन्दगी में उम्र भर ’आनन’
जो वक़्त-ए-जाँ बलब देखा फटी
तस्वीर थी मेरी
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17
महफ़िल में लोग आए थे अपनी अना के साथ
देखा नहीं किसी को भी ज़ौक़-ए-फ़ना के साथ
नासेह ! तुम्हारी बात में नुक्ते की बात है
दिल लग गया है मेरा किसी आश्ना के साथ
18
भला होते मुकम्मल कब यहाँ पे इश्क़ के किस्से
कभी अफ़सोस मत करना कि हस्ती हार जाती है
पढ़ो ’फ़रहाद’ का किस्सा ,यकीं
आ जायेगा तुम को
मुहब्बत में कभी ’तेशा’ भी बन
कर मौत आती है
19
जो अफ़साना अधूरा था विसाल-ए-यार का ’आनन’
19
जो अफ़साना अधूरा था विसाल-ए-यार का ’आनन’
चलो बाक़ी सुना दो अब कि मुझको नीद आती है
20
ये माना तुम्हारे मुक़ाबिल न कोई
मगर इस का मतलब ,ख़ुदा तो नहीं हो
बहुत लोग आए तुम्हारे ही जैसे
फ़ना हो गए,तुम जुदा तो नहीं
ये शराफ़त थी हमारी ,आप की सुन गालियां
चाहते हम भी सुनाते ,बेज़ुबां हम भी न थे
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गर हवाएँ सरकशी हों, क़ैद कर सकता है ’आनन’
इन्क़लाबी मुठ्ठियाँ तू , भींच कर ऐलान कर दे
23
मैं जैसा भी हूँ और जो भी बना हूँ
तुम्हारी ही तख़्लीक़ का आइना हूँ
न आलिम,न शायर,न उस्ताद ’आनन’
अदब से मुहब्बत ,अदब आश्ना हूँ
24
मैं दरख़्त हूँ ,वो लगा गया ,मैं बड़ा हुआ ,वो चला गया
वो बसीर था जो भी ख़्वाब थे मेरी शाख़ शाख़ में जज़्ब है
25
अगरअहसास है ज़िन्दा तो ज़िन्दा है ज़मीर’आनन’
वगरना इन अँधेरों में कहाँ से रोशनी मिलती
तेरा होना ,नहीं होना ,भरम है तो भी अच्छा है
न तू होता तसव्वुर में , कहाँ फिर ज़िन्दगी मिलती
26
कैसी वो कहानी थी ,सीने में छुपा
रख्खा
तुमने जो सुनाई तो ,इक दर्द उभर आया
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27
क़ातिल निगाह उसकी ,मक़्तूल हूँ मैं ’आनन’
वो मुझसे पूछता है ,क़ातिल है कौन तेरा ?
28
तेरी शख़्सियत का मैं इक आईना हूँ
तो फिर क्यूँ अजब सी लगी ज़िन्दगी है
नहीं प्यास मेरी बुझी है अभी तक
अज़ल से लबों पर वही तिश्नगी है
29
नासेहा, तेरा फ़लसफ़ा नाक़ाबिल-ए-मंज़ूर है
क्या सच,यहाँ की हूर से,बेहतर
वहाँ की हूर है ?
याँ सामने है मैकदा और तू बना है
पारसा
फिर क्यों ख़याल-ए-जाम-ए-जन्नत से हुआ मख़्मूर
है !
30
ख़ुशियाँ तमाम लुट गईं है कू-ए-यार में
जैसे हरा था पेड़ कटा हो बहार में
31
ख़ुशियाँ तमाम उम्र मुझे ढूँढती रहीं
आकर भी मेरे घर पे ,बगल से गुज़र गईं
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32
अब यह शे’र एक ग़ज़ल के रूप में ढल गया है
33
भला कब डूबने देंगे तुम्हारे चाहने वाले
दुआ कर के बचा लेंगे तुम्हारे चाहने वाले
34
ज़माने की हवा॒ऒ से वो क्यूँ बेजार रहता है
वो नफ़रत तो नहीं करता ,मुहब्बत भी नहीं करता
35
अगर होती नहीं उसकी लबों पे तिश्नगी ’आनन’
अगर होती नहीं उसकी लबों पे तिश्नगी ’आनन’
भला कैसे सफ़र कटता , नदी का इक समन्दर तक
36
अजब तेरी मुहब्बत का तरीक़ा है ,मेरे जानम
कभी दुतकार देती हो कभी पुचकार लेती हो
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37
हाज़िर है मेरी जान मुहब्बत में आप की
माँगा न आप ने ही कभी और बात है
38
कर के गुनाह-ओ- जुर्म भी वो ताजदार है
कहते सभी वो शख़्स बड़ा होशियार है
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समाप्त