अनुभूति 153/40
609
पहले वाली बात कहाँ अब
मौसम बदला तुम भी बदली
वो भी दिन क्या दिन थे अपने
मैं था ’पगला" तुम थी ’पगली
610
जिन बातों से चोट लगी हो
मन में उनको, फिर लाना क्यों
जख्म अगर थक कर सोए हो
फिर उनको व्यर्थ जगाना क्यों
611
जब से दूर गए हो प्रियतम
साथ गईं मेरी साँसे भी
देख रही हैं सूनी राहें
और प्रतीक्षारत आँखे भी
612
समझाने का मतलब क्या फिर
बात नहीं जब तुमने मानी
क्या कहता मैं जब तुमने ही
राह अलग चलने की ठानी
-आनन्द.पाठक