ग़ज़ल 425[74 फ़}
1222---1222---1222---1222
कोई आता है दुनिया में , कोई दुनिया से जाता है,
नवाज़िश है करम उनका, हमे क्या क्या दिखाता है
नही जो पाक सीरत हो, भरा हिर्स-ओ-हसद से दिल
इबादत या ज़ियारत हो, ख़ुदा नाक़िस बताता है ।
भरोसा है अगर उस पर, झिझक क्या है, हिचक फिर क्या
उसी का नाम लेता चल, अज़ाबों से बचाता है ।
न जाने क्या समझ उसकी, बहारों को ख़िज़ा कहता
हक़ीक़त जान कर भी वह, हक़ीक़त कह न पाता है ।
अदा करना जो चाहो हक़, तुम्हारी अहलीयत होगी
वगरना बेग़रज़ कोई फ़राइज़ कब निभाता है ।
तबियत आ ही जाती है जो ख़्वाहिश हो अगर उनकी
बना कर राहबर भेजे जिसे अपना बनाता बनाता है ।
हुए गुमराह क्यों ’आनन’ ये सीम-ओ-ज़र के तुम पीछे
अगर दिल की जो सुनते तुम, सही राहें बताता है ।
-आनन्द.पाठक-
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